बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और युवा नेता तेजस्वी यादव के बीच की बयानबाजी चर्चा का विषय बनी हुई है। तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को ‘पुतला’ और ‘मुखौटा’ कहकर संबोधित किया और यह अनुमान लगाया कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो नीतीश कुमार को हाशिये पर डाल दिया जाएगा। इसके जवाब में, नीतीश कुमार ने महागठबंधन के चुनावी वादों को ‘झूठ का पुलिंदा’ बताते हुए तीखा पलटवार किया।
बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन ने अपना घोषणापत्र जारी किया है, जिसमें परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का प्रमुख वादा किया गया है। इस वादे के तहत, सरकार बनने के 20 दिनों के भीतर नौकरी के नियम तय कर दिए जाएंगे और 20 महीनों में नियुक्ति पत्र बांटे जाएंगे। इसके अतिरिक्त, ‘जीविका दीदी’ को स्थायी सरकारी नौकरी और 30,000 रुपये प्रति माह वेतन, सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने और सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का भी प्रस्ताव है। महिलाओं के लिए ‘मैं बहन योजना’ के तहत 2,500 रुपये मासिक भत्ता, हर घर को 200 यूनिट मुफ्त बिजली और आरक्षण कोटे में वृद्धि भी घोषणापत्र का हिस्सा हैं।
तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘पुतला’ और ‘मुखौटा’ बताकर यह संकेत दिया कि वह सत्ता के केंद्र में नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी उन्हें इस्तेमाल कर रही है। हालांकि, नीतीश कुमार की त्वरित प्रतिक्रिया ने उनके इस तर्क को चुनौती दी। तेजस्वी लगातार यह दावा करते रहे हैं कि नीतीश कुमार अस्वस्थ हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि नीतीश कुमार रोजाना चार से अधिक चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं, जो उनकी सक्रियता को दर्शाता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बिहार की जनता तेजस्वी के इस ‘पुतला’ वाले आरोप पर कैसे प्रतिक्रिया देती है।
महागठबंधन के घोषणापत्र जारी होने के मौके पर तेजस्वी यादव की मौजूदगी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वही गठबंधन का चेहरा हैं। इस कार्यक्रम में लालू यादव और राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता अनुपस्थित रहे। यह भी साफ हुआ कि तेजस्वी की राजनीतिक लड़ाई सीधे तौर पर नीतीश कुमार के खिलाफ है, लेकिन वे नीतीश पर सीधा हमला करने से बचते दिखे।
**मुस्लिम वोट बैंक पर सबकी नजर**
इस चुनाव में तेजस्वी यादव के लिए एक बड़ी चुनौती मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करना है। वह बीजेपी का डर दिखाकर उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की सक्रियता ने मुस्लिम वोटों के समीकरण को जटिल बना दिया है। हाल ही में, कटिहार जिले में कांग्रेस सांसद तारिक अनवर और सीपीएम-एल विधायक महबूब आलम को मुस्लिम मतदाताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। मतदाताओं ने विकास कार्यों की कमी पर नाराजगी जताई। इसी तरह, सीतामढ़ी में भी राजद विधायक को मुस्लिम मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा।
प्रशांत किशोर मुस्लिम मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि वे बीजेपी के भय के जाल में न फंसें और अपने बच्चों के भविष्य पर ध्यान दें। ओवैसी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में रैलियां कर रहे हैं। बिहार की लगभग 18% आबादी मुस्लिम है और वे करीब 70 विधानसभा सीटों पर परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। सीमांचल के चार जिलों – किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया – में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। पिछले चुनावों में, अधिकांश मुस्लिम मतदाताओं ने महागठबंधन का समर्थन किया था, लेकिन ओवैसी की पार्टी ने भी महत्वपूर्ण वोट हासिल किए थे।
इस बार, महागठबंधन ने 30 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जबकि एनडीए में केवल पांच मुस्लिम उम्मीदवार हैं। वहीं, प्रशांत किशोर की पार्टी ने सबसे ज्यादा 32 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। तेजस्वी को चिंता है कि अगर ओवैसी और प्रशांत किशोर के उम्मीदवार मुस्लिम वोटों को बांटते हैं, तो महागठबंधन की जीत की राह मुश्किल हो सकती है। इसी चिंता के चलते घोषणापत्र में मुसलमानों के लिए बड़े वादे किए गए हैं, जिनमें वक्फ कानून को लागू न करने का भी वादा शामिल है, हालांकि इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
