बिहार विधानसभा चुनाव का मंच सज चुका है और महागठबंधन ने अपना तुरुप का पत्ता चल दिया है। 36 वर्षीय तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर, विपक्षी दल नीतीश कुमार के दो दशक के शासन को चुनौती देने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। यह एक साहसिक कदम है, जिसके नतीजे अभी अनिश्चित हैं।
महागठबंधन की मंशा साफ है – युवा तेजस्वी को आगे कर एम-वाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक को मजबूत करना और सत्ता के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करना। हालाँकि, सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे को लेकर तकरार और कुछ प्रमुख पार्टियों के अलग होने के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह रणनीति समय रहते अपना असर दिखा पाती है।
नीतीश कुमार जहाँ सत्ता-विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं, वहीं NDA में नेतृत्व को लेकर भी स्पष्टता का अभाव है। ऐसे में, तेजस्वी यादव के पास अपनी पहचान बनाने का यह बेहतरीन मौका हो सकता है। पर क्या बिहार की जनता युवा नेतृत्व के वादे पर भरोसा करेगी या पुराने अनुभव को तरजीह देगी?
**तेजस्वी का पलड़ा भारी क्यों हो सकता है:**
**एम-वाई वोट बैंक की अहमियत:** यादव और मुस्लिम समुदाय बिहार की राजनीति में एक मजबूत वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करते हैं। तेजस्वी को आगे लाने से इस समुदाय के मतदाताओं को एकजुट करने में मदद मिल सकती है, जो हाल के दिनों में कुछ हद तक बंट चुका था।
**NDA की नेतृत्व दुविधा:** एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार के अलावा किसी अन्य चेहरे पर सर्वसम्मति नहीं है, जो तेजस्वी को एक युवा और ऊर्जावान विकल्प के रूप में पेश करने का अवसर देता है। यह अनिश्चितता मतदाताओं को वैकल्पिक नेतृत्व की ओर आकर्षित कर सकती है।
**युवाओं का बढ़ता प्रभाव:** बिहार में बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं जो बदलाव और रोजगार के अवसरों की तलाश में हैं। तेजस्वी यादव का युवा होना और विकास तथा नौकरियों पर जोर देना इस वर्ग को आकर्षित कर सकता है।
**तेजस्वी के सामने चुनौतियाँ:**
**जातिगत संतुलन का अभाव:** यादवों को प्रमुखता देने से अन्य पिछड़ी जातियों में नाराजगी की आशंका है, जो महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। भाजपा इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है।
**’जंगल राज’ की आशंका:** विरोधी दल, विशेषकर भाजपा, लालू प्रसाद यादव के शासनकाल की यादें ताजा कर तेजस्वी पर ‘जंगल राज’ को वापस लाने का आरोप लगा रहे हैं, जो मतदाता वर्ग को डरा सकता है।
**विलंबित रणनीति का नुकसान:** महागठबंधन के अंदरूनी मतभेदों और सीट बंटवारे पर देर से सहमति बनने के कारण, तेजस्वी की उम्मीदवारी का ऐलान देर से हुआ है। इसका असर उनके प्रचार अभियान पर पड़ सकता है और यह समय NDA को अपनी रणनीति को मजबूत करने का मौका दे सकता है।
