बिहार में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, यह सवाल 14 नवंबर को नतीजों के साथ ही स्पष्ट होगा। लेकिन चुनावी माहौल में अटकलों का बाजार गर्म है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद कि चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा विधायक दल तय करेगा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या सत्ताधारी एनडीए के प्रमुख घटक दल भाजपा, नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटा सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा के लिए अपना मुख्यमंत्री बिठाना इतना आसान नहीं होगा। इसके पीछे कई अहम कारण हैं जो इस स्थिति को जटिल बनाते हैं।
**सीटों का समीकरण: जदयू और राजद के बीच कड़ा संघर्ष**
आगामी विधानसभा चुनावों में, नीतीश कुमार की जदयू 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं, महागठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दल मिलकर 96 सीटों पर चुनावी मैदान में हैं। इनमें से 59 सीटें ऐसी हैं जहाँ जदयू और राजद के बीच सीधा मुकाबला है, जो कुल सीटों का 61% है। यदि वाम दलों को भी इसमें शामिल करें तो यह संख्या 71 सीटों (74%) तक पहुँच जाती है।
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इन 71 सीटों से चुने जाने वाले विधायक सीधे तौर पर भाजपा के साथ नहीं जुड़ेंगे। राजनीतिक पंडित एस एम दिवाकर के अनुसार, बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार के शासनकाल से ही भाजपा के प्रभाव को कम करने के लिए सीधे मुकाबले की रणनीति अपनाई जाती रही है। इस रणनीति का उद्देश्य भाजपा को राज्य की राजनीति में अधिक हस्तक्षेप करने से रोकना है।
2020 के विधानसभा चुनावों को देखें तो इन्हीं 71 सीटों पर जदयू और राजद के बीच सीधा संघर्ष था। तब राजद ने इनमें से 48 सीटों पर जीत हासिल की थी, जो कि जदयू के खिलाफ 67.6% की प्रभावशाली स्ट्राइक रेट थी। तेजस्वी यादव ने अपने 75 में से 48 मुकाबले जदयू के खिलाफ जीते थे। उस चुनाव में महागठबंधन बहुमत से मात्र 12 सीटें दूर रह गया था, कुल 110 सीटें जीती थीं। जदयू ने राजद के मुकाबले वाली 71 सीटों में से मात्र 21 सीटें जीतीं, जिनकी स्ट्राइक रेट 29% थी।
इन 71 सीटों में से 13 पर जदयू की हार का कारण चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की उपस्थिति रही थी। लेकिन इस बार, दोनों नेता एनडीए का हिस्सा हैं, जिससे समीकरण बदल सकते हैं।
**एनडीए में शामिल होने से जदयू को मजबूती**
2020 के एनडीए के आंकड़ों पर गौर करें तो, जदयू 115 सीटों पर लड़ी, भाजपा 110 पर, हम 7 पर और वीआईपी 11 सीटों पर। परिणाम में जदयू को 43, भाजपा को 74, जबकि हम और वीआईपी को 4-4 सीटें मिलीं।
पिछले चुनाव में चिराग पासवान निर्दलीय उतरे थे, जिसके कारण एनडीए को 42 सीटों का नुकसान हुआ। इसमें से 36 सीटें जदयू की थीं, 4 वीआईपी की, और 1-1 सीट भाजपा व हम की थी।
इसी तरह, उपेंद्र कुशवाहा के अलग चुनाव लड़ने से जदयू को 5 सीटों का नुकसान हुआ था। कुल मिलाकर, इन दोनों नेताओं के अलग होने से जदयू को लगभग 41 सीटों पर भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
अब जब चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ हैं, तो जदयू को इन 41 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। दिवाकर बताते हैं कि इन नेताओं के गठबंधन में शामिल होने से दलित और कुशवाहा (कोइरी) समुदाय के वोटरों को एकजुट करने में मदद मिल सकती है, जिससे जदयू की सीटों की संख्या बढ़ने की संभावना है।
**लोजपा (आरवी) के लिए पुरानी जीत की राह**
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए के अंदर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है और 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसी खबरें थीं कि भाजपा ने चिराग को अधिक सीटें देकर नीतीश कुमार पर दबाव बनाने का प्रयास किया था। नीतीश कुमार को कुछ सीटों के आवंटन पर आपत्ति थी, लेकिन बाद में समाधान निकाला गया।
लोजपा (आरवी) को मिली 29 सीटों में से, एनडीए ने 2020 में 26 सीटों पर हार का सामना किया था। इनमें से 13 सीटें ऐसी हैं जहाँ एनडीए पिछले 15 सालों से, यानी 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में भी, जीत हासिल नहीं कर सका है।
सभी विश्लेषणों और उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, यह अत्यधिक संभावना नहीं दिखती कि भाजपा बिहार में नीतीश कुमार को दरकिनार कर अपना मुख्यमंत्री बना पाएगी। यदि भाजपा ऐसा करने का प्रयास भी करती है, तो नीतीश कुमार के पास राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने का एक संभावित विकल्प मौजूद रह सकता है।