हाल ही में IAS अधिकारी डॉ. नागरजुन बी. गौड़ा चर्चाओं में हैं, जब उन पर एक महत्वपूर्ण आरोप लगा कि उन्होंने हरदा में अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM) के तौर पर काम करते हुए एक निजी कंपनी को सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का चूना लगाने की इजाजत दे दी। आरोप है कि अवैध खनन के लिए 51 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना एक कंपनी पर लगाया जाना था, जिसे डॉ. गौड़ा ने घटाकर मात्र 4,032 रुपये कर दिया। इस फैसले ने सार्वजनिक बहस छेड़ दी है, खासकर RTI कार्यकर्ता आनंद जाट द्वारा यह मामला उठाए जाने के बाद।
**हरदा के जिला मजिस्ट्रेट का पक्ष:**
हरदा के जिला मजिस्ट्रेट (DM) सिद्धार्थ जैन ने इस विवाद पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि किसी भी खनन मामले में पहला नोटिस केवल स्पष्टीकरण मांगने के लिए होता है। उन्होंने किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से खारिज किया और कहा कि IAS अधिकारी डॉ. गौड़ा ने मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया था। जैन के अनुसार, अधिकारी ने एक उचित ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ जारी किया था, जिसे कोई भी देख सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति या संस्था इस फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वे कानूनी तौर पर अपील कर सकते हैं, क्योंकि यह एक न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। अभी तक किसी ने भी इस आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की है।
**डॉ. नागरजुन बी. गौड़ा: एक परिचय**
डॉ. नागरजुन बी. गौड़ा 2019 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के IAS अधिकारी हैं। वे अपनी सकारात्मक सोच, युवाओं को प्रेरित करने वाले कार्यों और लेखन के लिए जाने जाते हैं। चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने का निर्णय लिया। वे IAS अधिकारी सृष्टि जयंत देशमुख के पति हैं, जो 2019 बैच की ही अधिकारी हैं। यह युवा अधिकारी जोड़ा UPSC उम्मीदवारों के बीच काफी लोकप्रिय है।
**विवादित जुर्माना कटौती का मामला:**
यह मामला इंदौर-बेतुल राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के निर्माण से जुड़ा है। एक निजी निर्माण कंपनी, पाथ इंडिया, पर आरोप था कि उसने अँधेरिकखेड़ा गाँव में बिना अनुमति के भारी मात्रा में मुरम (गिट्टी) का खनन किया। तत्कालीन ADM प्रवीण फूलपगार ने इस पर 51.67 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाने का प्रारंभिक नोटिस जारी किया था। हालांकि, उनके स्थानांतरण के बाद डॉ. गौड़ा ने ADM का पद संभाला और मामले की दोबारा जांच की। पुनर्मूल्यांकन में पाया गया कि कुल 2,688 क्यूबिक मीटर ही मुरम का अवैध खनन हुआ था, जिसके आधार पर जुर्माना राशि को 4,032 रुपये तक सीमित कर दिया गया। यह जानना महत्वपूर्ण है कि 51 करोड़ का आंकड़ा केवल एक नोटिस था, न कि अंतिम आदेश, और कानून के अनुसार, हर नोटिस के बाद एक सुनवाई अनिवार्य होती है।
**RTI कार्यकर्ता के आरोप और बचाव:**
RTI कार्यकर्ता आनंद जाट ने इस मामले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जुर्माने की राशि में इतनी बड़ी कटौती अनुचित थी और इसमें किसी का व्यक्तिगत हित हो सकता है। उन्होंने दावा किया कि स्थानीय स्तर पर खनन के वीडियो और फोटोग्राफ जैसे कई सबूत थे, जिन्हें अनदेखा किया गया। जाट के अनुसार, ‘सबूतों के अभाव’ का हवाला देकर जुर्माना कम किया गया, जबकि स्थानीय लोगों के पास भी इसके प्रमाण थे। उन्होंने इस फैसले की निष्पक्ष जांच और अधिक पारदर्शिता की मांग की। वहीं, कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, खुद आनंद जाट पर जबरन वसूली और धमकी देने जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं।
**अधिकारी का जवाब और कानूनी पहलू:**
डॉ. गौड़ा ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका फैसला पूरी तरह से स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं और उपलब्ध साक्ष्यों पर आधारित था। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पदभार संभाला, तब तक मामला केवल नोटिस स्तर पर था, अंतिम निर्णय नहीं हुआ था। तहसीलदार की रिपोर्ट में खामियां थीं, और अवैध खनन के ठोस सबूत मौजूद नहीं थे। डॉ. गौड़ा ने यह भी रेखांकित किया कि उनके आदेश के बाद दो साल तक किसी ने भी इसके खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की, जो उनके निर्णय की कानूनी वैधता को पुष्ट करता है। मामले की सुनवाई में यह भी सामने आया कि जिन 19 भूखंडों में खनन का आरोप था, उनमें से 7 पर वैध परमिट थे। साथ ही, पाथ इंडिया को परियोजना 2021 में मिली थी, जबकि खनन 2020 में ही कथित तौर पर हुआ था, इसलिए पुरानी अवधि के लिए उन पर दोष मढ़ना गलत था। सरकारी नियमों के अनुसार, विशेष परियोजनाओं में उपयोग होने वाले मुरम और मिट्टी पर रॉयल्टी शून्य होने पर जुर्माना भी शून्य हो सकता है, जो कंपनी के पक्ष में गया।