अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने शनिवार को दारुल उलूम देवबंद का दौरा कर भारत के साथ मजबूत संबंध बनाने की उम्मीदें जगाई हैं। यह यात्रा भारत-अफगान कूटनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, खासकर तब जब तालिबान सरकार पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रही है।
**देवबंद में स्वागत और मुत्तकी के बोल**
दिल्ली से देवबंद पहुंचकर विदेश मंत्री मुत्तकी का दारुल उलूम के प्रमुखों, जिसमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी भी शामिल थे, ने गर्मजोशी से स्वागत किया। छात्रों और स्थानीय लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। मुत्तकी ने कहा, “मुझे यहां आकर बहुत खुशी हो रही है। मैं इस गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए सबका धन्यवाद करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि भारत और अफगानिस्तान के बीच दोस्ती के रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होंगे।”
**कूटनीतिक दांव-पेंच और धार्मिक जुड़ाव**
विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा अफगानिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। यह इस बात पर भी जोर देता है कि तालिबान के धार्मिक और शैक्षिक संबंध केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि भारत में भी उनकी मजबूत जड़ें हैं। देवबंद जैसी प्रतिष्ठित संस्था का दौरा करके, मुत्तकी ने भारत को यह संदेश दिया है कि तालिबान सरकार आपसी सहयोग और विकास के नए रास्ते तलाश रही है। यह पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने की एक रणनीतिक चाल भी मानी जा रही है।
**दारुल उलूम देवबंद: एक ऐतिहासिक और प्रभावशाली संस्थान**
1866 में स्थापित दारुल उलूम देवबंद दुनिया भर में इस्लामी शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। इसने कई प्रभावशाली विद्वानों को जन्म दिया है, जिनका मुस्लिम जगत में गहरा प्रभाव है। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार में भी दारुल उलूम के पूर्व छात्रों को महत्वपूर्ण पद मिले हैं। वर्तमान में, कुछ अफगान छात्र यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जो दोनों देशों के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान के महत्व को दर्शाता है।
**भविष्य की संभावनाएं और चाबहार बंदरगाह**
मुत्तकी ने भारत के साथ व्यापार और विकास परियोजनाओं में सहयोग की इच्छा जताई। उन्होंने विशेष रूप से ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के व्यापारिक जुड़ाव को बढ़ाने की बात कही, हालांकि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण आने वाली बाधाओं का भी जिक्र किया। उन्होंने भारत से अफगानिस्तान में निवेश बढ़ाने और राजनयिक संबंधों को और मजबूत करने का आग्रह किया। यह यात्रा दोनों देशों के बीच भविष्य में नियमित उच्च-स्तरीय संवाद की संभावनाओं को भी खोलती है।