अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) विश्व संरक्षण कांग्रेस में भारत ने स्पष्ट किया कि उसका पर्यावरण संरक्षण का दृष्टिकोण सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि गहराई से सांस्कृतिक और साक्ष्य-आधारित भी है। केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री, श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि भारत एक ऐसी नीति प्रणाली का समर्थन करता है जो साक्ष्य-संचालित, समानता-आधारित और हमारी सदियों पुरानी परंपराओं में निहित है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीना और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।
श्री सिंह ने कहा, “आधुनिक शब्दावली में जिसे आज हम सस्टेनेबिलिटी और क्लाइमेट चेंज कहते हैं, वे सिद्धांत भारत में युगों से प्रकृति के साथ एकीकरण के माध्यम से जीवन का हिस्सा रहे हैं।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मिशन लाइफ’ (Mission LiFE) का विशेष उल्लेख किया, जिसे COP26 में वैश्विक स्तर पर लॉन्च किया गया था। इस मिशन का उद्देश्य व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर पर्यावरण के प्रति सचेत व्यवहार को बढ़ावा देना है, ताकि विनाशकारी उपभोग की प्रवृत्ति को बदला जा सके। श्री सिंह ने कहा कि मिशन लाइफ का मूल भाव भारत के पारंपरिक ज्ञान और लोकाचार पर आधारित है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए एक जन आंदोलन खड़ा करना चाहता है।
मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को प्रतिस्पर्धी के बजाय सहयोगात्मक मानता है। देश इन स्वदेशी प्रथाओं को जलवायु अनुकूलन और जैव विविधता संरक्षण की औपचारिक व्यवस्थाओं में शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
उन्होंने उदाहरण के तौर पर नीलगिरि की टोडा जनजाति द्वारा चींटियों के व्यवहार से मानसून की भविष्यवाणी या अंडमान के जारवा समुदाय द्वारा मछलियों की चाल से चक्रवातों का अनुमान लगाने की प्राचीन विधियों का उल्लेख किया। राजस्थान की बावड़ियों (stepwells) का उदाहरण देते हुए उन्होंने जल संरक्षण की पारंपरिक और टिकाऊ तकनीकों पर प्रकाश डाला।
श्री सिंह ने आगे कहा, “IUCN द्वारा प्रस्तावित प्रकृति-आधारित समाधानों (nature-based solutions) के साथ, हमें यह संवाद और भी गहरा करने की आवश्यकता है। आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान का समन्वय हमें सैद्धांतिक बातों से निकलकर व्यावहारिक समाधानों की ओर ले जाएगा।”
भारत ने जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD) और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में राष्ट्रीय रेड लिस्ट मूल्यांकन (National Red List Assessment) पहल शुरू की है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की रिपोर्ट के अनुसार, श्री सिंह ने भारत के राष्ट्रीय रेड लिस्ट मूल्यांकन (NRLA) के लिए विजन 2025-2030 का अनावरण किया। इस पहल के तहत, भारत के समृद्ध पारिस्थितिक तंत्र में लगभग 11,000 प्रजातियों – जिसमें 7,000 पादप प्रजातियां और 4,000 जंतु प्रजातियां शामिल हैं – के विलुप्त होने के खतरे का व्यापक दस्तावेजीकरण और मूल्यांकन किया जाएगा। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) ने IUCN-भारत और सेंटर फॉर स्पीशीज सर्वाइवल, भारत के साथ मिलकर इस मूल्यांकन के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया है। श्री सिंह ने विश्वास व्यक्त किया कि यह विजन देश की प्रजातियों की संरक्षण स्थिति के आकलन और निगरानी के लिए एक समन्वित, समावेशी और वैज्ञानिक प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करेगा।