बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, महागठबंधन ने एक महत्वाकांक्षी चुनावी घोषणा के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने जनता से वादा किया है कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो वे यह सुनिश्चित करेंगे कि हर परिवार को, जिसमें कोई सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है, उसे एक सरकारी पद मिले। यह घोषणा बिहार में बढ़ती बेरोजगारी और अन्य राजनीतिक दलों द्वारा रोजगार सृजन के वादों के बीच आई है।
’20-20 योजना’ का क्या है मतलब?
तेजस्वी यादव ने अपने इस वादे को पूरा करने के लिए ’20-20 फॉर्मूला’ का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि सरकार बनने के 20 दिनों के भीतर एक कानून बनाया जाएगा और अगले 20 महीनों में, योग्य परिवारों को सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। तेजस्वी इस वादे को अपने चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा बना रहे हैं और इसे “ऐतिहासिक” करार दे रहे हैं।
आंकड़ों की कसौटी पर वादे का सच
बिहार जाति सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, राज्य में लगभग 2.76 करोड़ परिवार हैं। वर्तमान में, इनमें से लगभग 18 लाख लोग सरकारी नौकरियों में हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 2.58 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनमें कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं है। तेजस्वी के वादे के अनुसार, इन सभी परिवारों के लिए नौकरी की व्यवस्था करनी होगी।
लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। बिहार के सरकारी विभागों में स्वीकृत रिक्तियों की संख्या केवल 5 लाख के आसपास है। इतने बड़े पैमाने पर, यानी 2.58 करोड़ लोगों को नौकरी देना, वर्तमान रिक्तियों को देखते हुए असंभव प्रतीत होता है।
वित्तीय बोझ का पहाड़
बिहार सरकार वर्तमान में सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर सालाना लगभग 54,000 करोड़ रुपये खर्च करती है। यदि 2.58 करोड़ नए सरकारी कर्मचारियों को न्यूनतम 25,000 रुपये प्रति माह वेतन दिया जाए, तो सालाना वेतन का खर्च बढ़कर लगभग 7.7 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। यह राशि बिहार के मौजूदा वार्षिक बजट (3.17 लाख करोड़ रुपये) का लगभग ढाई गुना है। अर्थशास्त्री ऐसी योजना को बिहार की अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी बता रहे हैं। इसके अलावा, इन लाखों कर्मचारियों के लिए काम और पद सृजित करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
राजनीतिक दिग्गजों की राय
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने तेजस्वी के वादे को “आसमान से तारे तोड़कर लाने” जैसा बताया और इसे अव्यावहारिक करार दिया। वहीं, तेजस्वी यादव का कहना है कि उनका वादा एक “वैज्ञानिक अध्ययन” पर आधारित है। हालांकि, आलोचक उनसे इस अध्ययन का स्पष्ट विवरण और योजना प्रस्तुत करने की मांग कर रहे हैं।
चुनावी गणित और युवा वर्ग
आर्थिक विशेषज्ञों की चिंताओं के बावजूद, यह चुनावी वादा राजनीतिक गलियारों में एक “मास्टरस्ट्रोक” के रूप में देखा जा रहा है। बिहार में सरकारी नौकरी को आज भी स्थिरता, सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। तेजस्वी का यह वादा युवा मतदाताओं को लुभाने और चुनावी चर्चाओं पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मौजूदा सरकार ने भी पिछले वर्षों में लाखों नौकरियां देने का दावा किया है, जिससे यह वादा और भी चर्चा का विषय बन गया है।