तुलसीदास द्वारा शरद ऋतु के वर्णन से प्रेरित होकर, यह लेख रामलीला के उत्सव और महत्व पर प्रकाश डालता है। रामलीला, जो कि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर आधारित है, मन को राममय कर देती है और बचपन की यादों को ताजा कर देती है।
अयोध्या और बनारस, रामलीला के केंद्र रहे हैं। तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में बनारस में रामकथा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए रामलीला की शुरुआत की। रामचरितमानस ने उत्तर भारत में रामकथा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
देश में रामलीला की शुरुआत के ठोस प्रमाण नहीं हैं, लेकिन तुलसीदास ने रामचरितमानस के मंचन के माध्यम से इसकी शुरुआत की। उनका उद्देश्य जनमानस में यह विश्वास जगाना था कि राम की तरह, अत्याचारी शासन का अंत होगा।
मेघा भगत को बनारस में रामलीला का जनक माना जाता है। उन्होंने वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामलीला का मंचन किया, जिसे बाद में तुलसीदास ने रामचरितमानस के आधार पर लोकप्रिय बनाया। रामनगर की रामलीला, जो 400 साल से अधिक पुरानी है, आज भी प्रसिद्ध है।
पं. राधेश्याम कथावाचक ने राधेश्याम रामायण के माध्यम से रामलीला के संवादों को लोकप्रिय बनाया। उनके संवादों ने रामलीलाओं में नाटकीयता और भावनाएं भर दीं, जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
रामलीला दुनिया भर में मनाई जाती है, जिसमें थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, म्यांमार, लाओस, फिलीपींस, मलेशिया, श्रीलंका, नेपाल, जापान और रूस जैसे देश शामिल हैं।
रामलीला एक सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन है जो समाज में अनुशासन, नियम और मर्यादा को बढ़ावा देता है। राम का जीवन मानवीय है, और उनकी कथा आम आदमी के जीवन से जुड़ी है। रामलीला इस बात का प्रमाण है कि भारत राम को कैसे देखता है, और विदेशों में इसका मंचन इस कथा की सार्वभौमिकता को दर्शाता है।