27 सितंबर 1925 को, मुंबई के मोहिते का बाड़ा में, विजयादशमी के शुभ अवसर पर, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने पांच स्वयंसेवकों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की नींव रखी। उस समय कई लोगों ने हेडगेवार का मजाक उड़ाया, लेकिन किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि यह छोटा सा संगठन एक दिन दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी और हिंदू संगठन बन जाएगा।
आरएसएस, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से जाना जाता है, जल्द ही 100 साल का होने वाला है। आज पूरे भारत में इसकी 75,000 से अधिक शाखाएँ हैं। आरएसएस का दावा है कि इसके पास 1 करोड़ से अधिक प्रशिक्षित सदस्य हैं। संघ के परिवार में 80 से अधिक सहयोगी संगठन भी शामिल हैं। लगभग 40 देशों में संघ की सक्रियता से इसकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वर्तमान में, संघ की 56,000 से अधिक दैनिक शाखाएँ, 14,000 साप्ताहिक मंडलियाँ और 9,000 मासिक शाखाएँ आयोजित की जाती हैं।
आरएसएस के स्थापना दिवस पर, संघ के उदय और विस्तार की कहानी पढ़ें
खिलाफत आंदोलन और संघ की नींव
1919 में, प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, तुर्की का ऑटोमन साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा, जिन्हें दुनिया भर के मुसलमान अपना धार्मिक नेता मानते थे, को गद्दी से हटा दिया। इस घटना से मुसलमानों में गुस्सा भड़क उठा। भारत में भी, जहाँ ब्रिटिश शासन था, मुसलमान सड़कों पर उतर आए।
इस घटना के परिणामस्वरूप, खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व अली बंधुओं, शौकत अली और मोहम्मद अली ने किया, जिनका उद्देश्य खलीफा को पुनः तुर्की के सिंहासन पर स्थापित करना था। आंदोलन तेजी से फैला और लाखों लोग इससे जुड़े।
इस समय, भारत में हालात विस्फोटक थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें ताज़ा थीं। पंजाब में मार्शल लॉ लागू था और रौलेट एक्ट ने जनता को आक्रोशित कर दिया था। महात्मा गांधी, जो दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे, एक बड़े जनांदोलन की तैयारी कर रहे थे। उन्हें लगा कि खिलाफत आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए एक पुल का काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि ‘हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा’।
हेडगेवार का गांधी से मतभेद
गांधी के इस विचार से डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जो उस समय नागपुर के एक युवा कांग्रेसी थे, सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि धर्म को राष्ट्र से ऊपर रखना खतरनाक है। फिर भी, गांधी के आग्रह पर वे आंदोलन में शामिल हुए और उग्र भाषणों के कारण जेल गए।
1921 में, जब आंदोलन केरल के मालाबार पहुँचा, तो स्थिति बिगड़ गई। मुस्लिम किसानों और हिंदू जमींदारों के बीच संघर्ष शुरू हुआ, जिससे खूनी दंगे हुए और दो हजार से अधिक लोग मारे गए। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में लिखा कि हिंसा में जबरन धर्मांतरण और मंदिरों को नष्ट किया गया। एनी बेसेंट ने भी गांधी पर सवाल उठाए।
हेडगेवार इन घटनाओं से बहुत दुखी थे। उन्होंने महसूस किया कि हिंदुओं के लिए एक अलग संगठन की आवश्यकता है। वे हिंदू महासभा में भी शामिल हुए, लेकिन जल्द ही निराश हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि यह संगठन राजनीतिक समझौते में उलझा हुआ है और हिंदुओं के हितों की रक्षा नहीं कर पाएगा।
विजयादशमी पर संघ की स्थापना
27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन, हेडगेवार ने अपने घर पर पांच साथियों को बुलाया। बैठक में विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश सावरकर, डॉ. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर शामिल थे। उन्होंने घोषणा की कि आज से वे संघ शुरू कर रहे हैं। यहीं से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शुरुआत हुई।
शुरुआत में, सदस्य सप्ताह में केवल दो दिन मिलते थे। रविवार को व्यायाम और गुरुवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा होती थी, जिसे शाखा कहा जाता था। 17 अप्रैल 1926 को संगठन का औपचारिक नामकरण किया गया- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। उसी वर्ष राम नवमी पर स्वयंसेवकों ने खाकी शर्ट, पैंट, टोपी और बूट की वर्दी पहनी, जो संघ की पहचान बन गई।
नागपुर के मोहिते के बाड़ा मैदान में नियमित शाखाएँ शुरू हुईं, जहाँ से संघ धीरे-धीरे फैलता गया और भारतीय समाज-राजनीति पर अपनी छाप छोड़ता गया।
हेडगेवार के विचार से आरएसएस का विस्तार
डॉ. हेडगेवार ने युवाओं को जोड़ने का एक विशेष तरीका अपनाया। उन्होंने छात्रों को नागपुर से बाहर अन्य शहरों में पढ़ाई करने और वहाँ शाखाएँ शुरू करने के लिए प्रेरित किया। छात्रों को अपनी शाखाओं में अन्य छात्रों को शामिल करने के लिए कहा गया। इस तरह, संघ का संदेश नए शहरों और कॉलेजों तक पहुँचा। हेडगेवार छुट्टियों में लौटने वाले छात्रों से शाखाओं की गतिविधियों के बारे में पूछते थे।
1930 में, महाराष्ट्र के बाहर पहली शाखा वाराणसी में खोली गई। यह शाखा महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसके माध्यम से दूसरे सरसंघचालक, गुरुजी (माधव सदाशिवराव गोलवलकर) संघ में शामिल हुए। जो छात्र शाखा में नियमित रूप से नहीं आते थे, हेडगेवार उनके घर जाते थे, उनसे बातचीत करते थे और उनके परिवारों से मिलते थे। धीरे-धीरे, संघ में नए स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी, और शाखाएँ पूरे देश में फैल गईं।
सरसंघचालक
1925 से अब तक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में 6 सरसंघचालक हुए हैं। डॉ. हेडगेवार, जिन्होंने आरएसएस की नींव रखी, 1925 से 1940 तक सरसंघचालक रहे। 1940 में उनके निधन के बाद, माधव सदाशिवराव गोलवलकर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। गोलवलकर ने 1940 से 1973 तक पद संभाला। उनके निधन के बाद, मधुकर दत्तात्रेय देवरस 1973 में सरसंघचालक बने, जिन्हें बालासाहेब देवरस के नाम से जाना जाता है। 1993 में, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) सरसंघचालक बने। 2000 में, रज्जू भैया ने स्वास्थ्य कारणों से कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन को यह पद सौंपा। 2009 में, सुदर्शन जी ने भी स्वास्थ्य कारणों से डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत (मोहन भागवत) को यह जिम्मेदारी सौंपी।