बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल गरमा गया है और राजनीतिक दल अपनी रणनीति बना रहे हैं। इस बीच, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने घोषणा की है कि वह मेनिफेस्टो कमेटी और अभियान समिति बनाएगी। इन समितियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का नाम नहीं है, जो पार्टी के बड़े राजपूत नेता हैं। इसका कारण उनके बागी तेवर बताए जा रहे हैं। चर्चा है कि वे बीजेपी छोड़ सकते हैं, लेकिन उन्होंने इन खबरों को खारिज किया है।
आरके सिंह ने कहा कि पार्टी छोड़ने की खबरें झूठी हैं। उन्होंने कहा कि वे पार्टी में ही रहेंगे और किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की संभावना नहीं है। हालांकि, पार्टी ने उन्हें किनारे कर दिया है, क्योंकि उनके तेवरों ने आलाकमान को चिंता में डाल दिया है। सवाल यह है कि क्या आरके सिंह का बागी रुख और राजपूतों को लुभाने की कोशिश पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी?
### आरके सिंह का विरोध
आरा में एक कार्यक्रम में आरके सिंह ने अपनी पार्टी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही है और उन्हें भीतरघात का सामना करना पड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव में उन्हें कमजोर करने की साजिश रची गई। अब वे एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में हैं। उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या उन्हें अपनी पार्टी बनानी चाहिए। हालांकि, उन्होंने बाद में कहा कि वे बीजेपी में ही रहेंगे और नई पार्टी नहीं बनाएंगे, न ही किसी दूसरी पार्टी में जाएंगे।
चर्चा थी कि आरके सिंह प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में शामिल हो सकते हैं। यह चर्चा तब शुरू हुई जब प्रशांत किशोर ने बीजेपी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। आरके सिंह ने इन आरोपों का सबूत मांगा और कहा कि अगर नेता आरोपों का खंडन नहीं कर सकते, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। पार्टी आलाकमान उनकी हर गतिविधि पर नजर रख रहा था, ताकि राजपूत वोट किसी और को न मिल जाएं।
### अमित शाह का संदेश
18 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के रोहतास जिले के दौरे पर गए थे। कहा जा रहा है कि यह दौरा आरके सिंह के बागी तेवरों को शांत करने के लिए था। शाह ने इशारों में आरके सिंह को संदेश दिया कि पार्टी हाईकमान उनकी हर गतिविधि पर नजर रख रहा है। स्थानीय नेताओं का कहना है कि आरके सिंह की नाराजगी सिर्फ कुछ नेताओं से है, पार्टी से नहीं।
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी राजपूतों को मनाने की कोशिश कर रही है, जिनसे आरके सिंह नाराज हैं। चुनाव अभियान समिति में राजीव प्रताप रूडी को शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी प्रचार के लिए बुलाया जा सकता है, क्योंकि राजपूत उन्हें अपना मानते हैं। स्थानीय नेताओं का मानना है कि आरके सिंह की नाराजगी से राजपूतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे पीएम मोदी और विकास के लिए वोट करेंगे।
### आरा में हार
2024 के लोकसभा चुनाव में आरके सिंह आरा सीट से हार गए। उन्हें 4 लाख 69 हजार 574 वोट मिले, जबकि उनके विरोधी सुदामा प्रसाद को 5 लाख 29 हजार 382 वोट मिले। आरके सिंह 59 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। 2014 और 2019 में वे बड़े अंतर से जीते थे। अब उन्होंने हार के लिए पार्टी में भीतरघात को जिम्मेदार ठहराया है। सवाल यह है कि क्या वे राजपूतों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि बिहार में राजपूतों का दबदबा है?
### बिहार में राजपूतों की स्थिति
बिहार सरकार ने जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी किए हैं। बिहार की आबादी 13 करोड़ है। सवर्णों में ब्राह्मण 3.66% हैं, जबकि राजपूत 3.45% हैं, और भूमिहार 2.86% हैं। 2014 से पहले राजपूत आरजेडी के साथ थे, लेकिन बाद में एनडीए में शामिल हो गए।
2015 के विधानसभा चुनाव में 20 राजपूत विधायक चुने गए। 2020 में 28 राजपूत विधायक चुने गए। बीजेपी-जेडीयू और आरजेडी-कांग्रेस दोनों ने राजपूत उम्मीदवारों को टिकट दिया। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 21 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 15 जीते। जेडीयू ने 7 को टिकट दिया, जिनमें से 2 जीते। एनडीए के कुल 19 विधायक थे।
आरजेडी ने 8 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 7 जीते। कांग्रेस ने 10 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 1 जीता और 9 हार गए।