सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल नहीं माना जा सकता, इसलिए इन पर पॉश एक्ट लागू नहीं होगा। यह फैसला महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने वाले कानून, पॉश एक्ट (यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण) को लेकर दायर एक याचिका पर आया है। याचिका में मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को भी कार्यस्थल मानते हुए पॉश एक्ट के दायरे में लाया जाए।
अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक दल कोई कार्यस्थल नहीं हैं और उनके सदस्यों को कर्मचारी नहीं माना जा सकता। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अगर राजनीतिक दलों को कार्यस्थल माना गया तो यह ‘पेंडोरा बॉक्स’ खोलने जैसा होगा। कोर्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि किसी राजनीतिक पार्टी को कार्यस्थल कैसे घोषित किया जा सकता है, जहां कोई नौकरी या वेतन का प्रावधान नहीं होता।
यह मामला केरल हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों को पॉश एक्ट के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पॉश एक्ट में किसी भी संस्था के लिए कोई अपवाद नहीं है और राजनीतिक दलों को इससे बाहर रखना महिलाओं को असुरक्षित छोड़ देता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल नहीं माना जा सकता।
याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों को पॉश अधिनियम की धारा 2(g) के तहत नियोक्ता घोषित किया जाए और सभी राजनीतिक दलों के लिए ICC बनाना अनिवार्य किया जाए। याचिका में कई राजनीतिक दलों, जिनमें भाजपा, कांग्रेस और आप शामिल हैं, को प्रतिवादी बनाया गया था।