भारत में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के पीछे कई जटिल कारण हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के विशेषज्ञों के अनुसार, भूस्खलन केवल प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, वनों की अंधाधुंध कटाई और मानव गतिविधियों का मिलाजुला परिणाम है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है, जिससे भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भूस्खलन के पीछे खड़ी ढलानें, भूगर्भीय संरचनाएं और मानवीय गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं। इन क्षेत्रों में ढलानें मिट्टी, चट्टानों या मलबे से बनी होती हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण अस्थिर हो सकती हैं। टेक्टोनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में संरचनाएं कमजोर होती हैं और बारिश या भूकंप के कारण आसानी से टूट सकती हैं।
बारिश की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि लंबे समय तक बारिश से मिट्टी में नमी बढ़ जाती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। विकास, वनों की कटाई, सड़क निर्माण और बुनियादी ढांचे का विस्तार भी भूभाग को अस्थिर करते हैं।
GSI ने भूस्खलन की संवेदनशीलता वाले क्षेत्रों की पहचान की है, जिसमें हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट शामिल हैं। इन क्षेत्रों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु शामिल हैं। इन क्षेत्रों में भूस्खलन के खतरे को कम करने के लिए, जलवायु परिवर्तन से निपटने, वनों की कटाई को रोकने और संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।