आरएसएस की स्थापना के शताब्दी वर्ष में, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को याद किया गया। हेडगेवार बचपन से ही अंग्रेजों के विरोधी थे, जिन्होंने 8 साल की उम्र में ब्रिटिश समारोहों का बहिष्कार किया और स्कूल में वंदे मातरम का नारा लगाया।
डॉ. हेडगेवार ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काम किया, जिसमें बंगाल के अनुशीलन समिति के सदस्य भी शामिल थे। उन्होंने 1915 में राष्ट्रव्यापी विद्रोह की योजना बनाई और कांग्रेस के साथ मिलकर 1920 में नागपुर में एक सफल अधिवेशन का आयोजन किया। 1921 में, उन्होंने शराब की दुकानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और जेल गए।
उन्होंने 1923 में झंडा सत्याग्रह का आयोजन किया और स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया। डॉ. हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की और स्वतंत्रता संग्राम में स्वयंसेवकों को संगठित किया। भगत सिंह और राजगुरु ने उनसे मुलाकात की। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। हेडगेवार ने कहा कि भारत को अपनी ताकत से आजादी हासिल करनी होगी।
उन्होंने कांग्रेस के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव का समर्थन किया और आरएसएस शाखाओं को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्देश दिया। 1930 में, उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और जेल गए। 1932 में, मध्य प्रांत सरकार ने आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया, जिसका विरोध हुआ। हेडगेवार के विचारों ने कई नेताओं को प्रभावित किया, जिनमें महात्मा गांधी, वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस और श्यामा प्रसाद मुखर्जी शामिल थे।
1936 में फैजपुर कांग्रेस अधिवेशन में, एक आरएसएस स्वयंसेवक को झंडा फहराने के लिए सम्मानित नहीं किया गया, जिसका हेडगेवार ने विरोध किया। 1937 में, उन्होंने वीर सावरकर को आरएसएस के कार्यों से परिचित कराया। 1939 में, उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन का समर्थन किया। 1940 में, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारियों को संगठित करने के लिए त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती का स्वागत किया। भारत छोड़ो आंदोलन में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश खुफिया विभाग की रिपोर्टों में आरएसएस की गतिविधियों का उल्लेख किया गया था।