लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हाल ही में संपन्न संसद के मानसून सत्र के बाद अपनी बातें रखीं, जिसमें उन्होंने सदन की कार्यवाही के दौरान उठने वाले मुद्दों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन इसे सदन की गरिमा के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सांसदों को अपने विशेषाधिकारों का उपयोग करते समय मर्यादा का पालन करना चाहिए और सदन की गरिमा को बनाए रखना चाहिए। ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे सदन के अंदर और बाहर शालीन भाषा का प्रयोग करें और जनता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा कि सदस्यों को जनता की आवाज बनना चाहिए और उनके विचारों को उचित तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। ओम बिरला ने यह भी कहा कि सदन के अध्यक्षों को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। उन्होंने संविधान निर्माताओं द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को याद किया, लेकिन साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि इस स्वतंत्रता का उपयोग सदन की कार्यवाही को बाधित करने या उसकी गरिमा को कम करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि असहमति लोकतंत्र की ताकत है, लेकिन सदस्यों को सदन के नियमों और आचार संहिता का पालन करना चाहिए। इस अवसर पर, दिल्ली विधानसभा द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में, ओम बिरला ने विट्ठलभाई पटेल को श्रद्धांजलि दी, जो ब्रिटिश शासन के दौरान केंद्रीय विधान परिषद के पहले निर्वाचित भारतीय अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा कि पटेल का जीवन और कार्य सभी भारतीयों के लिए प्रेरणादायक हैं। ओम बिरला ने यह भी कहा कि पटेल द्वारा स्थापित परंपराएं आज भी प्रासंगिक हैं और देश के विधायी निकायों को मार्गदर्शन करती हैं।
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