केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंडिया ब्लॉक पर उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने रेड्डी के चयन के पीछे की विचारधारा पर सवाल उठाया और एक न्यायाधीश के रूप में उनके पूर्व के फैसलों का उल्लेख किया। शाह ने आरोप लगाया कि रेड्डी ने सलवा जुडूम आंदोलन को खारिज कर दिया और आदिवासियों के आत्म-रक्षा के अधिकार को छीन लिया, जिसकी वजह से भारत में दो दशकों से अधिक समय तक नक्सलवाद जारी रहा।
‘उन्होंने सलवा जुडूम को खारिज कर दिया और आदिवासियों के आत्म-रक्षा के अधिकार को खत्म कर दिया। इसकी वजह से इस देश में दो दशकों से अधिक समय तक नक्सलवाद चला… मेरा मानना है कि वामपंथी विचारधारा ही मानदंड रही होगी,’ शाह ने एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा।
गौरतलब है कि द हिंदू को रविवार को दिए एक इंटरव्यू में, सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और इंडिया ब्लॉक के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रेड्डी ने कहा कि वह सलवा जुडूम के फैसले और शाह के बयान से जुड़े विवाद में शामिल नहीं होना चाहते। रेड्डी, शाह के पहले के इस आरोप का जवाब दे रहे थे कि उन्होंने नक्सलवाद का समर्थन किया था और अगर उन्होंने सलवा जुडूम का फैसला नहीं दिया होता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 से पहले ही खत्म हो गया होता।
उन्होंने कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सार्वजनिक बहस के लिए नहीं था, इसलिए वह इस चर्चा में शामिल नहीं होंगे। रेड्डी ने कहा, ‘इसकी जो भी खूबियां हों, किसी फैसले की समीक्षा करने और उस पर टिप्पणी करने के स्वीकार्य मानक हैं।’
सलवा जुडूम, जिसका अर्थ गोंडी भाषा में ‘शांति मार्च’ है, छत्तीसगढ़ में जवाबी कार्रवाई के हिस्से के रूप में स्थानीय आदिवासी युवाओं को जुटाने और तैनात करने वाला एक आंदोलन था। इसका उद्देश्य क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों का मुकाबला करना था। इसकी शुरुआत 2005 में राज्य के बीजापुर जिले में ‘जन जागरण’ मार्च के रूप में हुई थी। हालांकि, यह जल्द ही सलवा जुडूम में बदल गया, जो ज्यादातर आदिवासी युवाओं से बना एक राज्य समर्थित मिलिशिया था। इसे बस्तर क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में माओवादी विद्रोहियों से लड़ने के लिए बनाया गया था और सशस्त्र किया गया था।
यह 2011 तक प्रचलन में रहा, जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया और प्रतिबंधित कर दिया। 5 जुलाई 2011 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने नंदिनी सुंदर और अन्य की एक याचिका के जवाब में, सलवा जुडूम को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया और इसे भंग करने का आदेश दिया। अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार को समूह से सभी हथियार, गोला-बारूद और उपकरण वापस लेने का भी निर्देश दिया। नक्सल विरोधी अभियानों में सलवा जुडूम के सरकार के इस्तेमाल की मानवाधिकारों के उल्लंघन और खतरनाक आतंकवाद विरोधी भूमिकाओं में खराब प्रशिक्षित आदिवासी युवाओं की तैनाती को लेकर कड़ी आलोचना हुई थी।
जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी जस्टिस एस एस निज्जर के साथ सुप्रीम कोर्ट की बेंच का हिस्सा थे, जिन्होंने सलवा जुडूम को अवैध और असंवैधानिक होने के कारण भंग कर दिया था।