मुंबई में जैन समुदाय द्वारा अपने धार्मिक त्योहार ‘पर्युषण पर्व’ के दौरान 9 दिनों के लिए बूचड़खानों को बंद करने की मांग ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। जैन समाज इसे धार्मिक और अहिंसक दृष्टिकोण से आवश्यक बता रहा है, जबकि खटीक समाज और विभिन्न राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं, इसे ‘खाने पर प्रतिबंध’ करार दे रहे हैं।
मुंबई हाईकोर्ट ने जैन समाज की 9 दिन की बंदी की मांग को खारिज करते हुए केवल दो दिन (24 और 27 अगस्त) बूचड़खाने बंद रखने का आदेश दिया है। जैन समाज ने इस फैसले के खिलाफ अपील की है, जिसकी सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो 9 दिन की बंदी का समर्थन करे।
जैन समाज का तर्क है कि मुंबई और महाराष्ट्र में जैन आबादी गुजरात से अधिक है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने अल्पकालिक बंदी को स्वीकार किया था। याचिका में सेठ मोती शॉ लालबाग जैन ट्रस्ट और अन्य शामिल हैं। जैन समाज का यह भी कहना है कि मुंबई में बड़ी शाकाहारी आबादी है और इतिहास में अकबर के समय में 6 महीने तक बूचड़खाने बंद रहे थे।
मुंबई महानगरपालिका और महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि शहर में मांसाहारी आबादी भी बड़ी है और देवनार बूचड़खाना पूरे मुंबई महानगरीय क्षेत्र के लिए आपूर्ति का केंद्र है। 9 दिन की बंदी से रोजगार और आपूर्ति दोनों प्रभावित होंगे।
विपक्ष इस मांग का विरोध कर रहा है, जबकि बीजेपी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। खटीक समाज, सकल मराठी समाज और मांस व्यवसायी संगठनों का कहना है कि यह मांग धार्मिक आधार पर थोपी जा रही है, जिससे हजारों लोगों का रोजगार प्रभावित होगा।
मुंबई में लगभग 20 लाख जैन समुदाय के लोग रहते हैं। पर्युषण पर्व पर बूचड़खाने बंद करने की यह मांग अब राजनीतिक रंग ले चुकी है। ठाणे, नवी मुंबई, पालघर, कल्याण, डोंबिवली, भिवंडी, वसई-विरार, मीरा-भायंदर में 40 लाख से अधिक जैन अनुयायी हैं।
आगामी स्थानीय चुनावों के मद्देनजर, बीजेपी जैन समाज को नाराज नहीं करना चाहती, जबकि विपक्षी दल इसे धार्मिक थोपाव बताकर वोट बैंक हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। अदालत के फैसले के बाद, मुंबई में धर्म, रोजगार और राजनीति के बीच एक नई बहस छिड़ गई है।