ऋषभ शेट्टी की ‘कांतारा: चैप्टर 1’ अब सिनेमाघरों में आ चुकी है, जो एक उत्कृष्ट कृति है। कुछ फिल्में मनोरंजन करती हैं, कुछ हमें गहरी सोच में डालती हैं, और कुछ ऐसी होती हैं जिन्हें देखकर तालियां बजाने का मन करता है। लेकिन जब एक ही फिल्म में ये सब कुछ होता है, तो उसे उत्कृष्ट कृति कहते हैं और ऋषभ शेट्टी की यह फिल्म वही है। प्रीक्वल के ट्रेलर से थोड़ी निराशा हुई थी, लेकिन फिल्म देखने के बाद डर दूर हो गया।
ऋषभ शेट्टी ने तीन साल पहले भारत की लोककथा पर आधारित एक फिल्म बनाने की हिम्मत की, जिस पर महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों का विश्वास है। इस फिल्म के प्रीक्वल में क्या खास है, यह जानने के लिए पूरा रिव्यू पढ़ें।
फिल्म की शुरुआत एक क्रूर राजा से होती है, जो लालच से भरा है। वह हर चीज पर कब्जा करना चाहता है। एक दिन उसकी नजर समुद्र किनारे एक बुजुर्ग पर पड़ती है। राजा उसे पकड़ने का आदेश देता है। जब बुजुर्ग को लाया जाता है, तो उसकी धोती से कुछ अनोखी चीजें गिरती हैं। राजा उन्हें देखकर हैरान हो जाता है और खजाने की तलाश में कांतारा की पवित्र धरती पर जाता है।
कई दशक बाद, कहानी भंगरा रियासत में आती है। राजा का बेटा विजयेंद्र बूढ़ा हो गया है और उसने राजपाट अपने बेटे कुलशेखरा को सौंप दिया है। उसकी बेटी कनकवथी राजकोष संभालती है। दूसरी ओर, कांतारा में बर्मे (ऋषभ शेट्टी) गांव का नेतृत्व करते हैं।
जब कांतारा के लोग अपनी बात लेकर भंगरा दरबार में आते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है। कांतारा की जमीन किसकी है? कौन इसकी रक्षा करेगा? और कौन इसे बर्बाद करने की साजिश कर रहा है? इसी बात पर एक जोरदार लड़ाई छिड़ जाती है। यह लड़ाई आस्था और अधिकार की है, जिसका नतीजा रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
अगर 2022 की कांतारा ने आपको चौंका दिया था, तो यह प्रीक्वल उस फिल्म से दस गुना आगे है। कोंकण, कर्नाटक, गोवा के गांवों में भगवान के साथ-साथ उनके गणों की भी पूजा की जाती है, जिन्हें तुलूनाडू में दैव कहा जाता है। कांतारा में हमने उनके बारे में जाना था, और इस फिल्म में उनकी शुरुआत की कहानी बहुत ही दिलचस्प तरीके से बताई गई है। शुरुआत से ही कहानी इतनी दिलचस्प है कि आप पलक झपकाए बिना इस दुनिया में खो जाते हैं।
फिल्म के हर सीन को बारीकी से बनाया गया है। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि सदियों से चले आ रहे गरीबों के शोषण और समानता की बात करती है। ऋषभ शेट्टी का बागी किरदार समाज की बंदिशों को तोड़ता है। पहला हाफ प्रभावशाली है और दूसरा ट्विस्ट और टर्न के साथ चौंकाने वाला।
ऋषभ शेट्टी ने इस फिल्म में अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया है। उन्होंने आदिवासी कबीलों के संघर्ष, उनकी आपसी लड़ाई जैसे कई पहलुओं को हमारे सामने रखा है। अरविंद कश्यप की सिनेमैटोग्राफी और अजनीश लोकनाथ का संगीत जबरदस्त है। विजुअल इफेक्ट्स भी कमाल के हैं।
ऋषभ शेट्टी इस फिल्म की रीढ़ हैं, और रुक्मिणी वसंत (कनकवथी) इसकी जान हैं। रुक्मिणी ने दमदार अभिनय किया है। जयराम ने भी अपने अभिनय से रंग जमाया है। गुलशन देवैया ने निकम्मे राजा कुलशेखरा का रोल बखूबी निभाया है। क्लाइमेक्स और गुलिगा के सीन में ऋषभ शेट्टी न्याय करते हुए लगते हैं।
यह फिल्म एक बेहतरीन सिनेमैटिक अनुभव है। यह साल की बेहतरीन फिल्म है।