पुराने ज़माने के भारतीय गाँवों की याद दिलाने वाली एक पंक्ति है, ‘गांव में पीपल, पीपल की छइयां… छइयां में पनघट…’। लेकिन शोले में गाँवों का नज़ारा ही बदल दिया गया था। यहाँ न तो पीपल के पेड़ थे और न ही हरे-भरे खेत, बल्कि पथरीली सड़कें और बंजर ज़मीन थी। फिर भी, शोले का रामगढ़ एक आदर्श गांव का मॉडल था, जिसे आज स्मार्ट विलेज कहा जा सकता है।
हालांकि, शोले की रिलीज़ के 50 साल बाद भी, रामगढ़ की कई बातें आज भी कई गाँवों के लिए एक सपना ही हैं। गाँव चट्टानों से घिरा था, लेकिन डाकुओं के आने पर ग्रामीण अनाज जमा करते हैं। यह जादुई लगता है, मानो रामगढ़ को किसी जादूगर ने बसाया हो।
यह जानने की कोशिश करते हैं कि रामगढ़ के जादूगर कौन थे। फिल्म के आर्ट डायरेक्टर राम येडेकर और डायरेक्टर रमेश सिप्पी व प्रोड्यूसर जीपी सिप्पी ने इस अनोखी दुनिया का निर्माण किया। वे कुछ अलग करना चाहते थे, एक ऐसी फिल्म बनाना चाहते थे जो भारत में पहले कभी नहीं बनी थी।
रमेश सिप्पी ने बताया कि डाकुओं वाली फिल्मों की शूटिंग चंबल में होती थी, लेकिन उन्होंने कुछ नया करने की सोची। उन्होंने एक ऐसा स्थान खोजने का फैसला किया जो पश्चिमी सिनेमा जैसा दिखे। राम येडेकर ने बताया कि वे बैंगलुरू के पास रामनगरम नामक एक जगह के बारे में जानते थे। वहां शूटिंग की गई।
रामनगरम ही शोले का रामगढ़ बना। यह फिल्म टूरिज्म का एक डेस्टिनेशन भी बन गया।
रामगढ़ की कुछ खास बातें हैं: यहाँ पानी की टंकी है, जो पूरे गांव की प्यास बुझाती है। यहाँ कोई छुआछूत नहीं है। वीरू इसी टंकी पर चढ़कर शराब के नशे में नौटंकी करते हैं, जो एक भावनात्मक दृश्य है।
1975 में, भारत के गाँवों में पानी की टंकी विकास का प्रतीक थी। रामगढ़ में बिजली नहीं थी, लेकिन जया बच्चन बार-बार लैंप बुझाती थीं। जय, अमिताभ बच्चन, बालकनी में माउथ ऑर्गन बजाते थे, जो प्रकाश और संगीत का एक अनोखा मिश्रण था।
शोले का रामगढ़ सामाजिक छुआछूत से मुक्त था, और भाईचारे की भावना थी। होली में सभी खुश होते थे और दुश्मन भी गले मिलते थे। यहां मंदिर और मस्जिद दोनों थे। बसंती, हेमा मालिनी, शिव मंदिर में पूजा करने जाती थीं। इमाम साहब बसंती का हाथ पकड़कर मस्जिद जाते थे।
गब्बर सिंह ने रहीम चाचा के बेटे की हत्या कर दी, तो उन्होंने कहा, ‘आज खुदा से पूछूंगा कि मेरे और बेटे क्यों नहीं थे।’ उन्होंने सिखाया कि इज़्ज़त की मौत जिल्लत की ज़िंदगी से बेहतर है।
बसंती, महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। वह घोड़ी धन्नो और मौसी के साथ तांगा चलाती थी। वह कहती है, ‘धन्नो घोड़ी होकर तांगा खींच सकती है तो मैं क्यों नहीं?’
इस तरह रामगढ़ एक मिनी हिंदुस्तान था। यहां सब मिलजुल कर रहते थे।