शोले के गब्बर सिंह का किरदार एक ऐसा शानदार और रहस्यमयी चरित्र था जिसकी चर्चा आज भी खत्म नहीं होती। उसका खौफ और प्रभाव रावण से कम नहीं था। गब्बर सिंह अब सिनेमा की दुनिया का एक प्रतीक बन चुका है, विज्ञापनों में इस्तेमाल होता है और कहानियों का हिस्सा है। गब्बर सिंह सालों से डर और रोमांच का पर्याय रहा है, दबंगई का प्रतीक रहा है। गब्बर का मतलब निडर, बेखौफ और हठी, जैसे रावण भी हठी था।
गब्बर सिंह रावण की तरह विद्वान तो नहीं था, लेकिन पढ़ा-लिखा जरूर था। उसे पढ़ना आता था। रामगढ़ से चेतावनी भरी चिट्ठी को वह पढ़ता है, जिसमें लिखा था, ‘तुम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे।’ गब्बर सिंह चिट्ठी पढ़कर अपने आदमियों को सुनाता है। बदले की आग से भीतर ही भीतर धधक उठता है और गांव वालों को अंजाम भुगतने की धमकी देता है।
1975 में रिलीज हुई फिल्म में गब्बर सिंह का किरदार सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ था। इस रोल को निभाने वाले अमजद खान के लिए यह एक बड़ी सफलता थी। शोले की सफलता के बाद अमजद खान को कई और फिल्में मिलीं। सत्यजित राय जैसे फिल्मकारों ने भी उनकी प्रतिभा को पहचाना। आज भी गब्बर और ठाकुर की दुश्मनी की यादें ताजा हैं।
गब्बर सिंह का किरदार अमजद खान को कैसे मिला, इसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। शुरुआत में, रमेश सिप्पी ने इस रोल के लिए डैनी को चुना था। डैनी उस समय एक प्रसिद्ध विलेन थे। उन्होंने यह रोल स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन बाद में उन्होंने धर्मात्मा फिल्म में काम करने का फैसला किया, जिसकी शूटिंग अफगानिस्तान में होनी थी। ऐसे में, डैनी को शोले और धर्मात्मा में से किसी एक को चुनना था, और उन्होंने धर्मात्मा को चुना।
इसके बाद, सलीम-जावेद ने अमजद खान का नाम सुझाया। जावेद अख्तर को अमजद खान और उनके भाई इम्तियाज खान की 1963 की एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में की गई परफॉर्मेंस याद आई। तब सलीम खान ने रमेश सिप्पी को अमजद खान का नाम दिया। अमजद खान का स्क्रीन टेस्ट हुआ और वह सफल रहे। शुरुआत में, रमेश सिप्पी और जीपी सिप्पी अमजद खान के काम से खुश नहीं थे। लेकिन अमजद के पिता जयंत ने उन्हें कुछ टिप्स दीं, जिससे उन्होंने फिल्मों में डाकू की परंपरागत छवि को बदला और संवाद का अंदाज भी बदला।
फिल्म रिलीज होने के बाद, गब्बर सिंह की गूंज चारों ओर फैल गई और अमजद खान के करियर की लॉटरी लग गई। अमजद ने फिल्मों में विलेन की स्टाइल बदल दी। रामलीलाओं में रावण का जो स्थान है, सिनेमा में वही जगह गब्बर सिंह ने ली। रावण जिस अट्टहास, ऊंचे संवाद, गर्व और निडरता के लिए जाना गया, गब्बर सिंह के खौफ में भी वह तेवर सालों से बरकरार है।