किशोर कुमार की गायकी की विशिष्टता सरलता में निहित जटिलता का आभास कराना था। मो. रफी, तलत महमूद और मुकेश जैसे दिग्गजों के मुकाबले उनके गाने गाना आसान माना जाता था। हालांकि, जब कोई संगीत प्रेमी इसे दोहराने की कोशिश करता, तो किशोर दा की गायकी की बराबरी नहीं कर पाता था। किशोर कुमार का व्यक्तित्व भी इसी सरलता में जटिलता का अहसास कराता था। रफी या मुकेश जैसे गायकों के बीच अपनी पहचान बनाना किसी भी नए गायक के लिए आसान नहीं हो सकता था, और किशोर कुमार के लिए भी यह चुनौती थी।
किशोर कुमार की गायकी की एक और विशेषता यह थी कि वह शास्त्रीयता की बंदिशों को तोड़ते थे, लेकिन उसकी अहमियत को पूरी शिद्दत से स्वीकार करते थे। उन्होंने शास्त्रीयता को कभी अलविदा नहीं कहा, बल्कि उसे लोकप्रिय बनाया और जन-जन तक पहुंचाया। उनकी गायकी इतनी आसान थी कि कोई भी किसी भी स्थिति में उनके गाने गा सकता था, बिना किसी औपचारिक बाध्यता के।
जब किशोर कुमार मुंबई पहुंचे, तो उस समय रफी, मुकेश और तलत महमूद जैसे दिग्गज गायकों का दबदबा था। किशोर कुमार ने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।
फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ में उनका गाया गाना ‘ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए…’ एक हास्य गीत था, जो उनके अन्य गीतों से अलग था। इस गाने में एक पंक्ति है- ‘गाना आए या न आए गाना चाहिए।’ किशोर कुमार के गीतों को गाते समय लोग इसी भावना से भर जाते हैं। किशोर कुमार शास्त्रीयता के ज्ञाता थे और उन्होंने बचपन से ही रियाज किया था।
किशोर कुमार का एक और गीत ‘इक चतुर नार करके श्रृंगार…’ हास्य से भरपूर है, जो फिल्म ‘पड़ोसन’ में महमूद और सुनील दत्त पर फिल्माया गया था। मन्ना डे ने महमूद को और किशोर कुमार ने सुनील दत्त को अपनी आवाज दी थी। इस गाने में शास्त्रीयता और पॉप संगीत के बीच एक दिलचस्प टकराव देखने को मिलता है।
किशोर कुमार ने महसूस किया कि अगर उन्हें अपनी पहचान बनानी है, तो उन्हें इन मशहूर गायकों की परंपरा से अलग हटकर गाना होगा। एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों ने उनकी प्रतिभा को निखारा।
1950 और 1960 के दशक में, किशोर कुमार ने फिल्मों में ज्यादातर हास्य भूमिकाएं निभाईं, जिसके कारण उनकी गायकी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया, जितनी अन्य गायकों की थी। लेकिन 1956 में फिल्म ‘फंटूश’ में देव आनंद पर फिल्माया गया गीत ‘दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना…’ आने के बाद उनकी लोकप्रियता में बदलाव आया। बाद में, राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ में ‘रूप तेरा मस्ताना…’ गाने के बाद, वह गायन की दुनिया में छा गए।
किशोर कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने के लिए उतना संघर्ष नहीं करना पड़ा, जितना अन्य नए कलाकारों को करना पड़ता था, क्योंकि उनके भाई अशोक कुमार और अनूप कुमार पहले से ही वहां मौजूद थे। उन्होंने फिल्मों में अभिनय किया और बाद में फिल्में भी बनाईं। उनकी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ भी काफी लोकप्रिय रही, लेकिन उनकी गायकी अधिक प्रसिद्ध हुई।
यह कहना कि किशोर कुमार को मुकेश और मो. रफी के निधन के बाद अधिक लोकप्रियता मिली, पूरी तरह से सच नहीं है। 1976 से पहले किशोर कुमार एक लोकप्रिय पार्श्वगायक बन चुके थे। उन्होंने देव आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना जैसे गायकों के लिए हिट गाने गाए थे। उन्होंने मो. रफी के साथ भी कई गाने गाए।
किशोर कुमार एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने कलात्मक स्वतंत्रता में राजनीतिक हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया। आपातकाल के दौरान, उन्होंने संजय गांधी की राजनीतिक सभा में जाने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उनके गाने रेडियो पर प्रतिबंधित कर दिए गए, लेकिन उन्होंने अपना स्वाभिमान नहीं खोया। अमिताभ बच्चन के साथ भी उनका एक विवाद हुआ।
1981 में किशोर कुमार एक फिल्म बना रहे थे- ‘ममता की छांव’। उन्होंने अमिताभ से एक गेस्ट रोल करने का अनुरोध किया, लेकिन अमिताभ ने मना कर दिया। इसके बाद 1984 में फिल्म ‘शराबी’ में दोनों के बीच तनाव देखने को मिला। किशोर कुमार का नाम नामावली में अमिताभ से नीचे होने पर विवाद हुआ।
किशोर कुमार ने अमिताभ बच्चन के लिए गाना बंद कर दिया, लेकिन बाद में दोनों फिर मिल गए। मनमोहन देसाई की फिल्म ‘तूफान’ में उन्होंने एक गाना गाया, जो 1989 में रिलीज़ हुई। किशोर कुमार का यह आखिरी गीत माना जाता है।