बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) प्लॉट घोटाले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कारोबारी रमेश झाबक की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए तीन अभियंताओं को बरी कर दिया है। झाबक को अब जेल जाना होगा, क्योंकि अदालत ने उनकी जमानत रद्द कर दी है।
घोटाले का यह मामला 1996 का है। आरडीए अधिकारियों पर रमेश झाबक को नियमों का उल्लंघन करते हुए दो प्लॉट आवंटित करने का आरोप था। इन प्लॉटों की नीलामी भी नहीं हुई थी, जिससे प्राधिकरण को भारी नुकसान हुआ था। 1997 में लोकायुक्त ने इस मामले में केस दर्ज किया था।
विशेष अदालत ने 2000 में तत्कालीन उप अभियंता वेद प्रकाश सिन्हा, मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.एल. गजभिये और सहायक अभियंता एच.एस. गुप्ता को दोषी पाया था। रमेश झाबक को साजिश रचने का भी दोषी ठहराया गया था।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा कि तीनों इंजीनियर केवल तत्कालीन चेयरमैन नरसिंह मंडल (स्वर्गीय) के आदेशों का पालन कर रहे थे, इसलिए उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने अभियंताओं को बरी करते हुए उनकी जमानत रद्द कर दी।
हालांकि, अदालत ने रमेश झाबक को अवैध तरीके से प्लॉट हासिल करने और प्राधिकरण को नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया। उनकी दो साल की सजा और 1,000 रुपये का जुर्माना यथावत रखा गया है।