छत्तीसगढ़ सरकार, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और पशुधन की रक्षा के लिए एक महत्वाकांक्षी गौधाम योजना शुरू कर रही है। इस योजना का उद्देश्य न केवल पशुधन की सुरक्षा और नस्ल सुधार करना है, बल्कि जैविक खेती, चारा विकास और गौ-आधारित उद्योगों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना भी है।
गौधाम योजना इस तरह से डिज़ाइन की गई है कि बेसहारा और घुमंतू गोवंश पशुओं की देखभाल की जा सके, साथ ही चरवाहों और गौ सेवकों को नियमित आय का एक स्थायी स्रोत प्रदान किया जा सके, जिससे ग्रामीण जीवन में आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता आ सके। इस योजना को वित्त और पशुधन विकास विभाग से भी मंजूरी मिल गई है।
योजना का मुख्य लक्ष्य गोवंशीय पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण और संवर्धन करना है। यह गौ उत्पादों को बढ़ावा देगा, चारा विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करेगा, गौधाम को प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित करेगा, ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करेगा और फसलों के नुकसान और दुर्घटनाओं में पशुधन और मानव जीवन की रक्षा करेगा।
यह योजना विशेष रूप से तस्करी या अवैध परिवहन में पकड़े गए पशुओं और घुमंतू पशुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गई है। राज्य में अवैध पशु तस्करी और परिवहन पर पहले से ही रोक है। अंतरराज्यीय सीमाओं पर पुलिस कार्रवाई में बड़ी संख्या में गोवंशीय पशु जब्त किए जाते हैं। प्रत्येक गौधाम में क्षमता के अनुसार अधिकतम 200 गोवंशीय पशु रखे जा सकेंगे।
गौधाम योजना के तहत चरवाहों को 10,916 रुपये प्रति माह और गौ सेवकों को 13,126 रुपये प्रति माह का मानदेय दिया जाएगा। इसके अलावा, मवेशियों के चारे के लिए भी प्रतिदिन धनराशि प्रदान की जाएगी। उत्कृष्ट गौधाम को वहां रहने वाले प्रत्येक पशु के लिए पहले वर्ष 10 रुपये प्रतिदिन, दूसरे वर्ष 20 रुपये प्रतिदिन, तीसरे वर्ष 30 रुपये प्रतिदिन और चौथे वर्ष 35 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से राशि दी जाएगी। संचालन में किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए बजट, नियम और शर्तें तय कर दी गई हैं।
मुख्यमंत्री का कहना है कि इस योजना से प्रदेश में पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और बड़ी संख्या में चरवाहों एवं गौ सेवकों को नियमित आय का साधन मिलेगा। उन्होंने कहा कि पशुओं की नस्ल सुधार कर उन्हें अधिक दूध देने और खेती-किसानी में पूरी क्षमता से उपयोग करने योग्य बनाया जा सकेगा। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में जैविक खेती और चारा विकास कार्यक्रमों को भी गति मिलेगी, जिससे ग्राम स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और गांवों की अर्थव्यवस्था सशक्त होगी।
गौधामों की स्थापना के लिए ऐसी सरकारी भूमि चुनी जाएगी, जहां सुरक्षित बाड़ा, पशुओं के शेड, पर्याप्त पानी और बिजली की सुविधा उपलब्ध हो। जिन गौठानों में पहले से बुनियादी ढांचा मौजूद है, वहां चारागाह की भूमि को हरे चारे के उत्पादन के लिए दिया जाएगा। यदि आसपास की पंजीकृत गौशाला समिति संचालन के लिए सहमत नहीं होती है, तो अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओ, ट्रस्ट, किसान उत्पादक कंपनी या सहकारी समिति संचालन के लिए आवेदन कर सकती हैं।
जिला प्रशासन के प्रस्ताव पर गौधाम स्थापित किए जाएंगे, जो पंजीकृत गौशालाओं से अलग होंगे। पहले चरण में, छत्तीसगढ़ के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में गौधाम स्थापित किए जाएंगे। जिला स्तरीय समिति प्राप्त आवेदनों का तुलनात्मक अध्ययन कर चयनित संस्था का नाम छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग को भेजेगी। मंजूरी के बाद चयनित संस्था और आयोग के बीच एक समझौता होगा, जिसके बाद गौधाम का संचालन उस संस्था को सौंपा जाएगा।
गौधाम में गोबर खरीदने का कोई प्रावधान नहीं होगा। पशुओं के गोबर का उपयोग चरवाहा स्वयं करेगा। यहां बेसहारा और घुमंतू गोवंशीय पशुओं को ही रखा जाएगा और उनका वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण और संवर्धन किया जाएगा। संचालन में गौशालाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। गौधाम को वहां रहने वाले पशुओं की संख्या के आधार पर राशि दी जाएगी। गौधाम से सटी भूमि पर चारा विकास के लिए भी आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। एक एकड़ में चारा विकास कार्यक्रम पर 47,000 रुपये और पांच एकड़ के लिए 2,85,000 रुपये का प्रावधान है।
प्रत्येक गौधाम को प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। संचालनकर्ता समिति या संस्था ग्रामीणों को गौ-उत्पाद विषय पर प्रशिक्षण देगी और उन्हें गौ-आधारित खेती के लिए प्रेरित करेगी। इसके अतिरिक्त, गौधाम गोबर और गौमूत्र से केंचुआ खाद, कीट नियंत्रक, गौ काष्ठ, गोनोइल, दीया, दंतमंजन, अगरबत्ती आदि बनाने का प्रशिक्षण, उत्पादन और बिक्री के लिए भी एक माध्यम बनेगा।