छत्तीसगढ़ से एक अभूतपूर्व खोज बताती है कि एक विशेष प्रकार का चावल कैंसर के इलाज में क्रांति ला सकता है। रायपुर में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बस्तर क्षेत्र से एक लगभग विलुप्त चावल की किस्म, जिसे संजीवनी नाम दिया गया है, पर शोध कर रहा है और पाया है कि इसमें कैंसर से लड़ने वाले गुण हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के साथ मिलकर किए गए शोध में पता चला है कि इस चावल में ऐसे यौगिक होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से खत्म कर सकते हैं। चूहों पर किए गए अध्ययनों में उल्लेखनीय परिणाम दर्शाए गए हैं, जिसकी पुष्टि सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी की है। संजीवनी चावल के लिए मानव परीक्षण जनवरी में टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में शुरू करने की योजना है। इस अनोखे चावल में 213 जैव रसायन हैं, जिनमें से सात को विशेष रूप से कैंसर-रोधी प्रभाव वाले के रूप में पहचाना गया है। माना जाता है कि ये यौगिक एनआरएफ2 मार्ग को सक्रिय करते हैं, जो शरीर को कोशिका क्षति से बचाने में मदद करता है जो कैंसर का कारण बन सकता है। प्रतिरक्षा को संभावित रूप से मजबूत करने के लिए दस दिनों तक 10 ग्राम संजीवनी चावल लेने की सलाह दी जाती है। यह खोज चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो चावल के लिए संभावित औषधीय उपयोग प्रदान कर सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस चावल का उपयोग अगले दो से तीन वर्षों में औषधीय रूप से किया जा सकता है। डॉ. दीपक शर्मा इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि यह शोध डॉ. आर. एच. रिछारिया की दूरदर्शिता का प्रमाण है, जिन्होंने 1974 में भविष्य के चिकित्सा उपचारों में चावल की चिकित्सीय क्षमता की कल्पना की थी।
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