टीवी-9 डिजिटल की एक बैठक में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने बिहार की राजनीति पर अपनी राय दी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे के बिना टिक नहीं सकतीं। उनसे जब यह सवाल किया गया कि जेपी आंदोलन के बाद कांग्रेस पार्टी का पतन कैसे हुआ, और क्या पार्टी ने कभी इस पर विचार किया कि जो पार्टी कभी हर सीट जीतती थी, वह अब आरजेडी के बिना क्यों कमजोर पड़ गई है, तो उन्होंने इसका जवाब दिया।
अखिलेश सिंह ने जोर देकर कहा कि दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकतीं। उन्होंने 2010 के चुनाव का उदाहरण दिया, जब लालू प्रसाद यादव अलग हो गए और कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि लालू जी की पार्टी की सीटें 80-90 से घटकर 22 रह गईं, और कांग्रेस भी कमजोर हो गई। उन्होंने कहा कि बिहार की सामाजिक संरचना को देखते हुए, बीजेपी के गठबंधन को हराने के लिए दोनों पार्टियों का साथ आना जरूरी है।
अखिलेश सिंह ने यह भी बताया कि 90 के दशक के बाद से कांग्रेस पार्टी कभी भी सत्ता में नहीं रही। उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकारों में कुछ समय के लिए शामिल होने के अलावा, पिछले 35 सालों से कांग्रेस का बिहार में कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं रहा है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के प्रदर्शन का जिक्र किया, जिसमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी शामिल था। उन्होंने बताया कि 2019 में 9 सीटों पर चुनाव लड़ने पर पार्टी को 30 लाख वोट मिले थे, जबकि इस बार 9 सीटों पर चुनाव लड़ने पर 40 लाख 82 हजार वोट मिले, जिससे 2.4% की वृद्धि हुई।
अखिलेश सिंह ने यह भी दावा किया कि बिहार में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट आरजेडी से बेहतर है। उन्होंने कहा कि अगर पूर्णिया सीट को भी गिना जाए, जहां पप्पू यादव कांग्रेस के सहयोगी सदस्य हैं, तो कांग्रेस ने 4 सीटें जीती हैं। आरजेडी ने 26 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद केवल 4 सीटें जीतीं। उन्होंने कहा कि जब गठबंधन होता है, तो कुछ समझौते करने पड़ते हैं, और पूर्णिया सीट को लेकर भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि कांग्रेस ने महाराजगंज की सीट लड़ी, जबकि आरजेडी वहां चुनाव लड़ती थी।