पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने मंगलवार को बिहार की राजनीति में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने एक बार फिर दल बदलते हुए एक नई पार्टी के साथ अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। इस फैसले पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। बिहार के ‘लेनिन’ के नाम से प्रसिद्ध जगदेव प्रसाद के पुत्र नागमणि शायद ही किसी ऐसी पार्टी से जुड़े न रहे हों। उन्होंने न केवल बिहार बल्कि केंद्र की राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, उन्होंने प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को छोड़कर बीजेपी का हाथ थामा। बीजेपी में यह उनका दूसरा कार्यकाल था, इससे पहले वह दो बार राजद और जदयू में, और दो बार कांग्रेस में भी रह चुके हैं। नागमणि कांग्रेस, राजद, जदयू, रालोसपा, एनसीपी और यहां तक कि बसपा जैसी पार्टियों में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने दल बदलने के साथ-साथ कई बार अपनी पार्टियां भी बनाईं, जिनका बाद में अन्य दलों में विलय कर दिया।
1977 में पहली बार विधायक बनने वाले नागमणि ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने पिता द्वारा स्थापित शोषित समाज दल से की थी। राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार, उन्होंने पार्टी बदलने में कभी संकोच नहीं किया।
शोषित समाज दल से शुरुआत करने वाले नागमणि ने कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, फिर कांग्रेस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, फिर जेडीयू और फिर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति की।
पार्टी बदलने के इस सफर में, नागमणि ने कम से कम दो बार अपनी पार्टी बनाई। 2015 में, उन्होंने समरस समाज पार्टी का गठन किया और 2017 में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में इसका विलय कर दिया। उसी वर्ष, उन्होंने शोषित इंकलाब पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में बहुजन समाज पार्टी में विलय हो गया।
नागमणि उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जो विधानसभा, विधान परिषद, राज्यसभा और लोकसभा, सभी सदनों के सदस्य रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे, 2003 में अटल बिहारी सरकार में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रहे।
इस सूची में आरसीपी सिंह और विजय कुमार चौधरी जैसे नेता भी शामिल हैं, जिन्होंने राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार अपनी पार्टियां बदली हैं।