भारत की महत्वाकांक्षी योजना, पुराने वाहनों को रेट्रोफिटमेंट के माध्यम से स्वच्छ ईंधन प्रौद्योगिकी पर स्थानांतरित करने पर केंद्रित है। इस दिशा में एक तकनीकी प्रगति हुई है। UNSW के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी रेट्रोफिट प्रणाली विकसित की है जो 90% हाइड्रोजन पर चल सकती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में तेजी से कमी आती है। इस सिस्टम से दक्षता में लगभग 26% की वृद्धि हो सकती है।
यह सिस्टम पूरी तरह से ग्रीन ईंधन में रूपांतरण नहीं है, लेकिन यह व्यवसायों को मौजूदा संपत्तियों को बेकार किए बिना उत्सर्जन को कम करने का एक तरीका प्रदान करता है। नई प्रणाली में मौजूदा डीजल इंजेक्शन सिस्टम को बदलकर हाइड्रोजन को सीधे इंजन में इंजेक्ट करना शामिल है। इसमें हाइड्रोजन और डीजल दोनों सिस्टम के लिए इंजेक्शन टाइमिंग का स्वतंत्र नियंत्रण भी शामिल होगा। इस रेट्रोफिटमेंट का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह कम गुणवत्ता वाले हाइड्रोजन का कुशलता से उपयोग कर सकता है।
विकास टीम ने दिखाया है कि कैसे स्ट्रैटिफाइड हाइड्रोजन इंजेक्शन तकनीक सिलेंडर के अंदर उच्च और निम्न सांद्रता पैदा करने में सक्षम होगी, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन पारंपरिक डीजल इंजनों की तुलना में कम हो जाएगा। भारत सरकार ने पर्यावरण के अनुकूल गतिशीलता के लिए अपनी योजनाओं में हाइड्रोजन प्रसंस्करण को शामिल किया है। अगर बुनियादी ढांचा स्थापित हो जाता है, तो ऐसे रेट्रोफिटमेंट किट आम हो सकते हैं।
UNSW जल्द ही इन रेट्रोफिटमेंट किट का व्यावसायीकरण करने की योजना बना रहा है, और यह उन बेड़े और जनरेटर ऑपरेटरों को लक्षित कर रहा है, जैसे कि खनन कंपनियां, जिनके पास पहले से ही हाइड्रोजन आपूर्ति मौजूद है।