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    Home»Chhattisgarh»हिल कोरवाओं ने चुनाव बहिष्कार की समाप्ति की घोषणा की
    Chhattisgarh

    हिल कोरवाओं ने चुनाव बहिष्कार की समाप्ति की घोषणा की

    Indian SamacharBy Indian SamacharOctober 12, 20235 Mins Read
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    कोरबा। ऊर्जा नगरी के नाम से प्रसिद्ध कोरबा जिले की तरह तो धन-धान्य की तुलना होती है और यहां हर साल विकास के नाम पर डीएमएफ से अरबों किसानों का खर्चा बढ़ जाता है, मगर यहां के कई इलाके आज भी पिछड़े हुए हैं। शहरी क्षेत्र में तो बड़े-बड़े निर्माण कार्य भी देखने को मिलते हैं, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां बिजली का उत्पादन जारी है, ऐसे गांव हैं जहां आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। ऐसे ही कुछ गांव कोरबा जिले के द्वीपसमूह क्षेत्र में हैं जहां राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा मान्यता के परिवार निवास करते हैं। विकास से कोसों दूर इन कोरवाओं ने आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर दिया है।

    इस गांव में नहीं है आखिर क्या समस्या..!

    कोरबा जिले के जिला पंचायत क्षेत्र क्रम-21के पंचायत ग्राम केराकछार के अधिवासी ग्राम सरध, बघारी ढांढ के लोगों ने गांव में जगह-जगह पर बैनर-पोस्टर लगाए हैं। चुनाव का बहिष्कार करने की बात लिखी गई है। यहां लगभग प्राचीन अवशेष गांव ऐसे हैं, जहां पहाड़ी कोरवा जनजाति परिवार निवास करते हैं। वे खेती के अलावा वनोपज संग्रहकर्ता कर जीविकोपार्जन करते हैं। इन में रहने वाले परिवार को अभी भी पानी बिजली और सड़क जैसे कारखाने की दरकार है। गांव में मोबाइल डिवाइस नहीं है, जिसके लिए विरोध स्थिति में मदद के लिए ग्रामीण मुख्यालय में सूचना भी नहीं दे। गाँव में समस्या का अंबार लगा हुआ है।

    ढोंगी का पानी, बिजली से भी हैं मुद्रा

    यहां रहने वाले पहाड़ी कोरवा और कुछ अन्य जनजातियों के परिवार ढोलडीही के पानी का उपयोग करते हैं। उन्हें ऊर्जाधानी का रहना तो कहा जाता है, लेकिन उन्हें बिजली भी नियति नहीं है। उनकी सबसे बड़ी समस्या है सड़क की। वे ठंड, गर्मी और बारिश के दिनों में भी पगडंडियों से मुख्य मार्ग तक पहुंच गए हैं। बाघरी डांड में रहने वाले बंधन सिंह पहाड़ी कोरवा का कहना है कि उनके गांव में पानी और बिजली की कमी है। उन्हें अंधेरी रात में गुजराती बंधक बना दिया गया है, शैतान शैतानों के अवशेष जीव जंतुओं का खतरा बना हुआ है।

    – गांव का विकास कैसे हुआ, इन बच्चों को देखकर समझिए

    मोबाइल पर बात करने के लिए अपनाते हैं ऐसा तरीका

    इस गांव की कुमुदिनी मिंज ने तो मोबाइल फोन को लेकर होने वाली समस्या भी बताई। उनका कहना है कि गांव तक बेहतर सड़क की कमी है तो मोबाइल मोबाइल भी नहीं है। कई बार घायल महिला, बीमार या किसी अन्य घटना पर सहमति होने पर अस्पताल ले जाने के लिए टोल फ्री नंबरों पर संपर्क करना होता है, उन्हें पहाड़ी के ऊपर या फिर पेड़ पर चढ़ाना होता है। कई बार मुख्य मार्ग में पहुंचने के बाद संपर्क होता है। अस्पताल पहुंचने में देरी से अनहोनी की आपदा भी बनी हुई है।

    प्रशासन की ओर से ग्रामीण क्षेत्र का स्मारक

    जिला प्रशासन ने वर्षों पहले पंचायत ग्रामों के सीमांकन के दौरान जो दोषियों की थी उनके स्मारक आज भी सरधी और बधारी डांड़ के ग्रामीण स्मारक रहे हैं। असली इन दोनों को पास के मदनपुर पंचायत से जोड़ने के बजाय केराखार पंचायत से जोड़ा गया। अब पंचायत एसोसिएटेड को किसी भी काम के लिए हिल पार कर केराखार कंपनी ऑफिस जाना है। और यदि वे सड़क मार्ग से भी पंचायत जाते हैं तो उनकी दूरी 20 किमी से अधिक तय की जाती है, जबकि सरध और बधारी डांड की दूरी मदनपुर पंचायत से 4 किलोमीटर अधिक है। यहां तक ​​टिप्स के लिए सड़क भी है।

    “चुनाव बहिष्कार के अलावा कोई विकल्प नहीं”

    यहां के रिवॉल्यूशन का कहना है कि पानी, बिजली, सड़क और मोबाइल जैसी सुविधाओं को लेकर सरकारी उत्पादों और जन परियोजनाओं का चक्कर कट-कट कर थक गया है। वे अब पूरी तरह से निराश हैं। ऐसे में उनके सामने विधानसभा चुनाव का बहिष्कार के अलावा कोई भी रास्ता नहीं बचा। रिवायत होने ने अपनी मांग पूरी नहीं पर चुनाव बहिष्कार का बहिष्कार कर दिया है। पहाड़ी कोरवा गावों के सरहद जिले में चुनावी बहिष्कार के बैनर लगाए गए हैं, ताकि कोई भी अपने गांव या क्षेत्र में न रह सके। यदि समस्या का समाधान हो गया है तो वे चुनाव में हिस्सा लेने की बात कह रहे हैं।

    ऐसे है डीएमएफ की सलाह

    जिला खनिज न्यास (डीएमएफ) कोरबा जिले में हमेशा से कायम है। यहां के आश्रमों से डीएमएफ के रूप में मिलने वाला फंड दूसरे आस्कर को ग्लास के बाद भी कई करोड़ का खीरा फेंकता है। जिले के अधिकारी और नेता जब इस नकदी खर्च के लिए प्रस्ताव देते हैं तो जिले के इन पिछड़े इलाकों का नाम लेने वाला भी नहीं होता है। अगर जरा सा भी ध्यान यहां के सार्वभौम को दिया जाए तो ऐसे का संपूर्ण विकास हो सकता है, मगर नतीजा सामने है।

    – बिजली के अभाव में गुजरात कर रहे हैं ग्रामीण

    अंतिम चरण से समग्र समस्या जानेंगे नेता जी

    बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री ननकी राम कंवर इलाके के इस गांव में आते हैं. इस संबंध में हमने ननकी राम कंवर से बात की तब उन्होंने कहा कि काम तो प्रशासन को करना होता है, वे कभी ध्यान दें तब ना। मगर जब हमने उनके द्वारा दिए गए प्रयासों के बारे में जाना तो उन्होंने बताया कि गांव की प्रमुख समस्या बिजली है। वे उस ग्राम पंचायत में खुद जाएंगे और उनके साथियों के दर्शन के बाद उसे दूर करने का प्रयास करेंगे।

    बता दें कि ननकी राम कंवरपोर्ट क्षेत्र के दिग्गजों से प्रतिनिधित्व करा रहे हैं और वे विकास के मुद्दे को लेकर प्रमुख भी रह रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि उनके क्षेत्र के कई इलाके ऐसे भी हैं जो आज भी पीछे हैं। हालाँकि यह भी सच है कि इन पिछड़े जंगलों की जानकारी और डीएमएफ जैसे सहायक जिलों में होने के बाद भी जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं, यह भी इन जंगलों के पीछे के प्रमुख कारणों में से एक है।

    फ़ाइल फ़ोटो: विपक्ष को लेकर इस तरह लड़ने वाले ननकी राम कंवर के कई इलाक़े आज भी हैं बैक

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