झारखंड के करंजि में ओल्चिकी लिपि के शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संथाली भाषा, संस्कृति और ज्ञान की सुरक्षा व संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया। यह आयोजन दिशोम जाहेरथान में हुआ, जो ओल्चिकी लिपि के विकास के 100 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है। इस महत्वपूर्ण लिपि का सृजन पंडित रघुनाथ मुर्मू ने किया था, जिन्होंने संथाली समुदाय को उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और गौरव का आधार प्रदान किया।
समारोह के दौरान, राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वयं संथाली में एक प्रार्थना गीत गाया, जिसे उन्होंने अपनी स्मृतियों से याद किया। यह गीत प्रकृति माँ ‘जाहेर आयो’ से समाज के उत्थान हेतु आशीर्वाद प्राप्त करने का भाव रखता है।
संथाली भाषा में अपने उद्बोधन में, राष्ट्रपति ने इस पावन स्थल पर अपनी उपस्थिति को एक भावनात्मक अनुभव बताया। उन्होंने संथाली भाषा-भाषी साहित्यकारों और समाज सुधारकों के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की, जो ओल्चिकी लिपि और संथाली भाषा को जीवित रखने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान को ओल्चिकी लिपि में जारी करने को एक ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया, जो देश की भाषाई विविधता को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सुशासन तभी संभव है जब सरकारी नियम और सूचनाएं आम जनता तक उनकी अपनी भाषा में पहुंचे।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संथाली भाषा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले 12 गणमान्य व्यक्तियों को सम्मानित किया। इस अवसर पर उपस्थित राज्यपाल संतोष गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासी विरासत की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
