हिमालय की दुर्गम चोटियों के बीच, भारत अपनी चीन से लगी सीमा पर एक अभूतपूर्व सैन्य बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है। यह महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसका उद्देश्य 2020 के गलवान संघर्ष जैसी किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटना है, इसमें रणनीतिक सड़कों, सुरंगों, पुलों और हवाई अड्डों का निर्माण शामिल है। यह भारत की रक्षा तैयारियों में एक बड़े बदलाव का संकेत है, जो तीव्र सैन्य प्रतिक्रिया और सुगम आपूर्ति सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के किनारे अपनी सैन्य अवसंरचना को मजबूत करने के लिए भारी निवेश कर रहा है। इस पहल का मुख्य लक्ष्य सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को सीमा तक तेज़ी से पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाना है। सीमा सड़क संगठन (BRO) इस प्रयास का नेतृत्व कर रहा है, जिसका बजट 2025 तक लगभग 810 मिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। इसके तहत, हजारों किलोमीटर नई सड़कों का निर्माण, कई हेलीपैड की स्थापना और हवाई पट्टियों का उन्नयन किया जा रहा है। इस कार्य में जुटे इंजीनियर और श्रमिक अत्यधिक विपरीत मौसम और पहाड़ी परिस्थितियों का सामना करते हुए अथक परिश्रम कर रहे हैं।
**गलवान झड़प: एक महत्वपूर्ण सबक**
2020 के जून में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने भारत को अपनी सीमाओं पर कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स की कमी का अहसास कराया। इस संघर्ष में 20 भारतीय जवानों की शहादत हुई। यह घटना इस बात का प्रमाण थी कि चीन अपनी उन्नत अवसंरचना के बल पर सैनिकों को कितनी तेज़ी से सीमा पर तैनात कर सकता है, जबकि भारत को इसके लिए कई दिन लग जाते थे। पूर्व सैन्य अधिकारियों के अनुसार, इस घटना ने भारत की सोच में एक बड़ा बदलाव लाया और सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया। पहले, यह आशंका थी कि सीमा के पास सड़कें बनाने से दुश्मन को फायदा हो सकता है, लेकिन गलवान के अनुभव ने इस धारणा को बदल दिया।
**महत्वाकांक्षी परियोजनाएं और रणनीतिक महत्व**
इन विकासों में सबसे प्रमुख ज़ोजी ला सुरंग परियोजना है, जो लगभग 11,500 फीट की ऊंचाई पर बन रही है। 14 किलोमीटर लंबी यह सुरंग लद्दाख को पूरे साल बाकी देश से जोड़े रखेगी, जो वर्तमान में भारी बर्फबारी के कारण महीनों तक कटा रहता है। इससे न केवल सैन्य आपूर्ति, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी आवागमन सुगम होगा।
इसके अतिरिक्त, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण न्योमा एयरबेस को आधुनिक बनाया जा रहा है, जो चीनी सीमा के करीब स्थित है। इसे बड़े कार्गो विमानों को संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है। इस क्षेत्र में कई नए हेलीपैड भी विकसित किए जा रहे हैं, और कई हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में भी नई सड़कों और पुलों का निर्माण जारी है, जिससे दूरदराज के इलाकों तक पहुंच और सैन्य तैनाती में सुधार होगा। हाल ही में, कई महत्वपूर्ण बीआरओ परियोजनाओं का उद्घाटन हुआ है, जो भारत की उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
**लॉजिस्टिक्स की चुनौती और निवारक रणनीति**
उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स अभी भी एक बड़ी चुनौती है। सैनिकों और उपकरणों को दुर्गम इलाकों तक पहुंचाने के लिए रेल, ट्रक, काफिले और अंतिम चरण में खच्चरों और पोर्टर्स का उपयोग किया जाता है। हर सैनिक को प्रतिमाह लगभग 100 किलोग्राम आपूर्ति की आवश्यकता होती है, और छोटे फॉरवर्ड पोस्टों को दैनिक आधार पर बड़ी मात्रा में ईंधन की आवश्यकता होती है।
भारत की इस निर्माण रणनीति को ‘रेड कार्पेट’ की आशंका से हटकर एक मजबूत निवारक क्षमता के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम चीन द्वारा अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में किए जा रहे विकास के जवाब में है। हालांकि, यह स्वीकार किया जाता है कि बढ़ी हुई सैन्य उपस्थिति से विवादित क्षेत्रों में तनाव बढ़ सकता है। भारत का मानना है कि शक्ति के माध्यम से स्थिरता कायम की जा सकती है।
यह व्यापक निर्माण अभियान भारत की रक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। यह न केवल सैन्य तैयारी को मजबूत करता है, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों को राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ने और स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर को सुधारने में भी मदद करता है। यह दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत की दृढ़ता का प्रतीक है।
