पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर एक ऐसी खतरनाक रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिसका सीधा निशाना भारत है। ‘इस्लामिक NATO’ के नाम से जानी जाने वाली यह गुप्त सैन्य गठबंधन बनाने की कोशिश, भारत को अलग-थलग करने और सैन्य रूप से कमजोर करने के उद्देश्य से की जा रही है। हाल ही में जॉर्डन के साथ हुई बैठक ने इस षड्यंत्र को और हवा दी है।
**जॉर्डन में पाकिस्तानी सैनिकों की तैनाती का प्रस्ताव**
सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जॉर्डन के सेना प्रमुख के साथ एक गुप्त बैठक में ‘सामरिक सहयोग’ के नाम पर पाकिस्तानी सैनिकों को जॉर्डन में तैनात करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव ‘क्षेत्रीय स्थिरता’ के बजाय पाकिस्तान के अपने रणनीतिक हितों को साधने के लिए है। इस कदम से पाकिस्तान मध्य पूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाना चाहता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।
यह कूटनीति का नहीं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा अपनी पहुंच बढ़ाने का एक प्रयास है। सऊदी अरब और लीबिया के बाद, जॉर्डन को शामिल करने की कोशिश, भारत को घेरने की एक बड़ी योजना का हिस्सा लगती है।
**मुनीर की बहुआयामी रणनीति**
आसिम मुनीर की योजना के तीन मुख्य पहलू हैं:
1. **परमाणु शक्ति का लाभ उठाना:** मुनीर मुस्लिम देशों को यह कहकर लुभाने की कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान के पास ही इस्लामिक दुनिया की एकमात्र परमाणु क्षमता है, इसलिए वही इस गठबंधन का नेतृत्व करने के योग्य है। दोहा में हुई इस्लामिक शिखर बैठक में, उसने स्पष्ट किया था कि इस गठबंधन का उद्देश्य ‘मध्य पूर्व में इजराइल का मुकाबला करना और दक्षिण एशिया में भारत को पूरी तरह से परास्त करना’ है।
2. **’भाड़े की सेना’ का प्रस्ताव:** वह अमीर अरब देशों को अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के बदले में वित्तीय सहायता प्राप्त करने की पेशकश कर रहा है। इसका दोहरा अर्थ है – एक तरफ अरब देशों से धन लेना और दूसरी तरफ भारत के साथ उनके बढ़ते आर्थिक और सामरिक संबंधों को कमजोर करना।
3. **जिहादी विचारधारा का इस्तेमाल:** पाकिस्तान की सेना सीधे तौर पर भारत का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। इसलिए, मुनीर कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा का हथियार के रूप में उपयोग कर रहा है। वह मुस्लिम देशों से पाकिस्तान की विफलताओं को भुलाकर, धार्मिक एकता के नाम पर उसके साथ जुड़ने की अपील कर रहा है।
**सेना प्रमुख का विवादास्पद भाषण**
लीबिया में एक कार्यक्रम के दौरान, आसिम मुनीर ने एक ऐसा भाषण दिया जो कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देने वाला था। उन्होंने कहा, “एक मुसलमान के तौर पर, दुश्मन के दिल में खौफ पैदा करने के लिए हर समय तैयार रहना हमारा पवित्र कर्तव्य है। यह अल्लाह का हुक्म है। सभी मुस्लिम देशों को न केवल सैन्य ताकत दिखानी चाहिए, बल्कि पूरी दुनिया के खिलाफ युद्ध छेड़ने का साहस भी जुटाना चाहिए।” ऐसे शब्द किसी देश के सेना प्रमुख के लिए चिंताजनक हैं और यह पाकिस्तान की मंशाओं पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
**क्यों विफल होगी मुनीर की योजना?**
आधुनिक विश्व में, अरब देश पाकिस्तान के ऐसे सैन्य गठबंधनों में रुचि रखने की संभावना कम है। संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देश भारत के साथ मजबूत आर्थिक और सामरिक संबंध बना रहे हैं। जॉर्डन भी भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार मानता है। वहीं, पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है और आईएमएफ से बार-बार मदद की गुहार लगा रहा है।
कंगाल और अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान, आर्थिक गुरुत्वाकर्षण के नियम के आगे टिक नहीं पाएगा। मुनीर की ‘इस्लामिक NATO’ योजना, रेत पर बनी इमारत की तरह है, जिसका कोई भविष्य नहीं है।
**भारत की कूटनीति का कमाल**
भारत को पाकिस्तान की इन चालों का जवाब देने के लिए सीधे सैन्य टकराव की आवश्यकता नहीं है। भारत की मजबूत कूटनीति, रक्षा सौदे और आर्थिक साझेदारी मध्य पूर्व में पहले से ही स्थापित हैं। जबकि मुनीर पर्दे के पीछे साज़िशें बुन रहा है, भारत विश्व स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान की यह योजना उस पर ही कितनी भारी पड़ती है।
