वर्ष 2025 भारतीय रक्षा उद्योग के लिए एक अभूतपूर्व प्रगति का वर्ष रहा, जिसने देश को वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित किया है। लोवी इंस्टीट्यूट के एशिया पावर इंडेक्स 2025 में भारत को तीसरे स्थान पर रखा गया है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद आता है। यह उपलब्धि देश की बढ़ती सैन्य क्षमता और सामरिक महत्व को दर्शाती है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों में स्वदेशी हथियारों और ड्रोन प्रौद्योगिकी के सफल प्रदर्शन ने भारत की युद्धक तैयारी को उजागर किया है। इसने न केवल देश की आत्मनिर्भरता को बढ़ाया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रक्षा उपकरणों की मांग को भी प्रेरित किया है।
भारत अब केवल रक्षा उपकरणों का आयातक नहीं रह गया है, बल्कि एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभर रहा है। 2026 में रक्षा निर्यात ₹30,000 करोड़ के आंकड़े को पार करने की उम्मीद है, जिसका लक्ष्य 2029 तक ₹50,000 करोड़ तक पहुंचना है। यह परिवर्तन ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल की सफलता का प्रमाण है।
बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने रक्षा बजट में 20-25% की वृद्धि की योजना बनाई है। यह वृद्धि उन्नत हथियार प्रणालियों के विकास, आधुनिकीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में मदद करेगी।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार, पिछले दस वर्षों में रक्षा निर्यात में 35 गुना वृद्धि हुई है, जो भारत की वैश्विक रक्षा बाजार में बढ़ती प्रमुखता को दर्शाती है। 2024-25 में ₹24,000 करोड़ के निर्यात के साथ, भारत 100 से अधिक देशों को अपने उत्पाद बेच रहा है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भारत की तकनीकी क्षमता और आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित किया, जिसने कई देशों को भारतीय रक्षा समाधानों में रुचि लेने के लिए प्रेरित किया। भविष्य में, AI-संचालित प्रणालियाँ और मानव रहित वाहन भारत की रक्षा रणनीति का अभिन्न अंग होंगे।
सीमाओं पर तनाव के बीच, भारत अपने वायुसेना के बेड़े को आधुनिक बनाने और उन्नत हथियार प्रणालियों की खरीद पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। नौसेना भी हिंद महासागर में अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिए नई पीढ़ी के जहाजों और हथियारों को शामिल कर रही है।
रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारों का विकास किया जा रहा है। इन परियोजनाओं में भारी निवेश से रोजगार के अवसर पैदा होंगे और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी। भारत का पहला स्वायत्त समुद्री शिपयार्ड नौसैनिक प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण कदम है।
2025 में लागू किए गए सुधारों ने रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया है, जिससे आधुनिकीकरण और नवाचार को बढ़ावा मिला है। संयुक्त थिएटर कमांड और साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से रक्षा क्षमताओं में और वृद्धि होगी।
2025 में रक्षा उत्पादन ₹1.54 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जिसमें 65% से अधिक उपकरण घरेलू स्तर पर निर्मित हुए। इसने आयात पर निर्भरता को कम किया है और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को मजबूत किया है।
भारत का रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र तकनीकी नवाचार, मजबूत घरेलू उत्पादन और रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से विकसित हो रहा है। यह आत्मनिर्भरता भारत को भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है।
आगामी वर्षों में, रक्षा बजट में वृद्धि और निजी क्षेत्र के सक्रिय सहयोग से, भारत वैश्विक रक्षा परिदृश्य में एक अग्रणी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। मार्च 2026 तक ₹30,000 करोड़ के निर्यात का लक्ष्य, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।
