पश्चिम बंगाल में पुलिस की कार्रवाई को लेकर विवाद गहराता जा रहा है, जहां प्रदर्शनों के दौरान पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप लगे हैं। सवाल यह है कि क्या पुलिस कानून का पालन करती है या फिर किसी एजेंडे के तहत काम करती है, खासकर जब विरोध प्रदर्शनों में अलग-अलग समुदाय शामिल हों।
मामला तब सुर्खियों में आया जब बांग्लादेश में एक हिंदू युवक की हत्या के विरोध में कोलकाता में हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का लक्ष्य बांग्लादेश उप-उच्चायोग को एक ज्ञापन सौंपकर वहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा करना था। लेकिन, पश्चिम बंगाल पुलिस ने उन्हें रोका और लाठीचार्ज किया, जिसने व्यापक जन आक्रोश को भड़का दिया।
घटनास्थल से आई तस्वीरों में भगवाधारी साधुओं और आम नागरिकों पर पुलिस की कार्रवाई साफ दिख रही थी। एक तस्वीर में एक हिंदू संत हाथ जोड़कर पुलिस से विनती करते नजर आए, ठीक इससे पहले उन पर लाठियां बरसाई गईं। यह दृश्य शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के प्रति क्रूरता का प्रतीक बन गया है।
इसके विपरीत, विपक्षी दल राज्य में पहले हुए अन्य विरोध प्रदर्शनों का हवाला दे रहे हैं। इस साल मार्च से अक्टूबर के बीच, गाजा के समर्थन में हुए प्रदर्शनों में काफी हंगामा हुआ, सड़कों पर जाम लगाया गया और नारेबाजी हुई। लेकिन, तब पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा नहीं लिया।
इसी तरह, अप्रैल में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान मुर्शिदाबाद, भांगर और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में पुलिस पर पथराव हुआ और पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हुए। इसके बावजूद, पुलिस की प्रतिक्रिया को काफी हद तक संयमित बताया गया। कई जगहों पर तो पुलिस पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के बावजूद कार्रवाई न करने का आरोप भी लगा।
आलोचकों ने अगस्त में ‘नाबान्न अभियान’ के दौरान हुई पुलिसिया कार्रवाई का भी जिक्र किया है, जिसे वे मौजूदा स्थिति से अलग बताते हैं। यह सब मिलकर इस धारणा को बल देता है कि राज्य सरकार और पुलिस एक “चुनिंदा” नीति पर काम कर रही है। उन लोगों का आरोप है कि जब हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा उठता है, तो पुलिस की कार्रवाई सख्त हो जाती है, जबकि अन्य मुद्दों पर नरमी बरती जाती है। हालांकि, राज्य सरकार ने इन गंभीर आरोपों पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
यह मुद्दा अब राज्य की राजनीति में एक गरमागरम बहस का विषय बन गया है। यह लोकतंत्र में निष्पक्षता, सभी के लिए समान कानून और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने के अधिकार जैसे मौलिक सवालों को उठाता है।
