रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का नई दिल्ली में आगमन सिर्फ एक द्विपक्षीय बैठक नहीं थी, बल्कि यह वैश्विक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण क्षण था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हवाई अड्डे पर व्यक्तिगत स्वागत करके भारत और रूस के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित किया। इस यात्रा ने दोनों देशों के बीच अटूट विश्वास और सहयोग को नई दिशा दी।
भारत और रूस के बीच आर्थिक सहयोग में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। जहां पांच साल पहले व्यापार 8 अरब डॉलर था, वहीं आज यह 68 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूसी तेल का आयात महत्वपूर्ण बना हुआ है, भले ही कई देश प्रतिबंधों के कारण रूस से दूरी बना रहे हों। साथ ही, भारतीय सेना का एक बड़ा हिस्सा रूसी सैन्य हार्डवेयर पर निर्भर है, जो दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी की महत्ता को दर्शाता है।
वैश्विक मंच पर तेजी से बदलते समीकरणों के बीच, पुतिन की भारत यात्रा रणनीतिक महत्व रखती है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में बदलाव आया है, जबकि अमेरिका के साथ भारत के संबंध भी एक नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में, रूस का चीन के साथ बढ़ता गठजोड़ और भारत का इन दोनों देशों के साथ अपना संतुलन बनाए रखना, वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है।
इस यात्रा ने पश्चिमी देशों के रूस को अलग-थलग करने के प्रयासों के बावजूद, भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने के दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित किया। यह यात्रा केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम था, जिसने यह संदेश दिया कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी दबाव में नहीं झुकेगा।
रूस ने इस अवसर का उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बना हुआ है। एशिया, अफ्रीका और ग्लोबल साउथ के देशों के साथ रूस की बढ़ती निकटता इस बात का प्रमाण है। भारत के लिए, रूस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। रूस से मिलने वाले रियायती तेल ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है और विकास दर को बनाए रखने में मदद की है।
इस यात्रा ने यह स्थापित किया कि मॉस्को वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना हुआ है। भारत और चीन जैसे प्रमुख एशियाई देशों के साथ रूस की संलग्नता उसके क्षेत्रीय प्रभुत्व की योजनाओं को दर्शाती है। भले ही कोई बड़ी घोषणाएं न हुईं हों, लेकिन रक्षा, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में पर्दे के पीछे चल रहे सहयोग का महत्व बहुत अधिक है।
पुतिन की यात्रा ने भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति को भी पुष्ट किया। रूस ने भारत पर भरोसा जताया है और यह स्वीकार किया है कि नई दिल्ली अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है।
यह यात्रा भारत-अमेरिका संबंधों के बीच भी हुई, जहाँ अमेरिका भारत पर रूस के साथ संबंधों को सीमित करने का दबाव बना रहा था। भारत ने चतुराई से अपनी विदेश नीति का प्रबंधन करते हुए, अमेरिका, रूस और चीन जैसे प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित किया है।
एशियाई देशों, जैसे सऊदी अरब और तुर्की के साथ रूस के बढ़ते संबंध, इस क्षेत्र में उसके प्रभाव विस्तार की ओर इशारा करते हैं। मॉस्को का निवेश और सहयोग इस बात का संकेत है कि भविष्य का वैश्विक शक्ति केंद्र एशिया ही होगा।
भारत के लिए अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलन साधना एक कठिन कार्य है। रूस के साथ पुराने रक्षा और ऊर्जा संबंध भारत को एक मजबूत स्थिति प्रदान करते हैं। साथ ही, भारत अपनी संप्रभुता को बनाए रखते हुए, पश्चिमी देशों के साथ मजबूत संबंध भी विकसित कर रहा है।
यह यात्रा भारत-रूस संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ने के बजाय, मौजूदा मजबूत नींव को और पक्का करती है। आने वाले समय में रक्षा, परमाणु ऊर्जा, श्रम गतिशीलता और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने की उम्मीद है। यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से भी सहयोग का विस्तार होगा।
संक्षेप में, पुतिन की भारत यात्रा ने भारत-रूस के बीच चिरस्थायी संबंधों को प्रदर्शित किया और यह साबित किया कि दोनों देश मिलकर जटिल वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और साझा रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं।
