रूस ने 2021 में अमेरिका के F-35 को टक्कर देने के लिए Su-75 ‘चेकमेट’ नामक एक महत्वाकांक्षी स्टील्थ फाइटर जेट का अनावरण किया था। इस विमान को अत्याधुनिक स्टील्थ तकनीक, उन्नत सेंसर और मजबूत निर्यात क्षमता के साथ पेश किया गया था। लेकिन आज, चार साल बाद भी, यह बहुचर्चित विमान अवधारणाओं और रंगीन प्रचार सामग्री से आगे नहीं बढ़ पाया है। एक कामकाजी प्रोटोटाइप की उम्मीदें लगातार “अगले साल” तक टलती जा रही हैं, जो इसके वास्तविक विकास की धीमी गति को दर्शाता है।
इस परियोजना के धीमेपन का मुख्य कारण यूक्रेन युद्ध और उस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों का रूस के रक्षा उद्योग पर पड़ा गहरा असर है। देश की उत्पादन क्षमताएं, जो कभी नए विमानों के विकास का समर्थन कर सकती थीं, अब पुरानी पीढ़ी के विमानों की मरम्मत, ड्रोन उत्पादन और भारी मात्रा में कम लागत वाले गोला-बारूद बनाने पर केंद्रित हो गई हैं।
यह स्थिति रूस की तकनीकी क्षमताओं पर सवाल खड़े करती है। जब देश को महत्वपूर्ण माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और मशीन टूल्स जैसी बुनियादी चीजें भी प्रतिबंधों से बचने के लिए गुप्त रास्तों से मंगवानी पड़ती हैं, तो एक अगली पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर को विकसित करने और उसे तैनात करने की उसकी क्षमता संदिग्ध हो जाती है। Su-75 अब रूसी रक्षा उद्योग की तकनीकी प्रगति का प्रदर्शन करने के बजाय, एक प्रतीकात्मक परियोजना बन गया है, जिसका उद्देश्य विदेशी बाजारों को यह विश्वास दिलाना है कि रूस अभी भी सैन्य विमानन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, भले ही वास्तविकता इससे कोसों दूर हो।
**चेकमेट: रूस की निर्यात महत्वाकांक्षाओं का सहारा?**
‘चेकमेट’ को रूस के वैश्विक लड़ाकू विमान बाजार में घटते प्रभाव को फिर से स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह उम्मीद थी कि यह विमान रूस की नवाचार क्षमता का प्रदर्शन करेगा और एक ऐसे युग में किफायती उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगा जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वचालित युद्ध का दबदबा बढ़ने वाला है। हालांकि, यूक्रेन युद्ध ने रूसी सैन्य उपकरणों की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे रोसोबोरोनेक्सपोर्ट (Rosoboronexport) के निर्यात में कमी आई है। पहले जो रूसी विमान शक्तिशाली माने जाते थे, अब युद्धक्षेत्र में आसानी से नष्ट हो रहे हैं।
रूस के एयरोस्पेस क्षेत्र में प्रतिभा पलायन, आपूर्ति श्रृंखलाओं का विघटन और निवेश की कमी देखी जा रही है। Su-75 को इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना था और देश की रक्षा क्षमता में नई जान फूकनी थी। लेकिन हकीकत यह है कि बिना मजबूत औद्योगिक आधार, विश्वसनीय इंजन, सुरक्षित एवियोनिक्स और स्थिर सॉफ्टवेयर के ‘गति’ हासिल करना असंभव है। इस प्रकार, Su-75 की स्थिति T-14 अरमाटा टैंक जैसी ही है, जिसका भव्य अनावरण तो हुआ, लेकिन जिसने कभी जमीनी स्तर पर कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई।
**युद्ध का सैन्य उड्डयन पर प्रभाव:**
यूक्रेन युद्ध ने रूसी सैन्य उड्डयन के लिए सभी प्राथमिकताओं को बदल दिया है। जिन कारखानों और परीक्षण सुविधाओं का उपयोग नए स्टील्थ विमानों के विकास के लिए किया जा सकता था, वे अब पुराने विमानों को उड़ान योग्य बनाए रखने और मौजूदा प्रणालियों में छोटे-मोटे सुधार करने में व्यस्त हैं। ऐसे में, किसी भी नए और जोखिम भरे विमान के बजाय, सीमित संसाधनों को ग्लाइड बम, क्रूज मिसाइलों और ड्रोन जैसे आजमाए हुए और बड़े पैमाने पर उत्पादित हथियारों पर केंद्रित किया जा रहा है। यहाँ तक कि रूस का फ्लैगशिप पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान Su-57 भी बहुत ही सीमित संख्या में ही उत्पादित हो रहा है। इन परिस्थितियों में, Su-75 का विकास न केवल रुक गया है, बल्कि उसे हाशिए पर धकेल दिया गया है।
युद्ध की भीषणता रूस की रणनीतिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट करती है: जीवित रहना, संख्यात्मक श्रेष्ठता और कम लागत वाली मारक क्षमता। एक पूर्णतः नया स्टील्थ फाइटर एक ऐसे जटिल पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता है जिसे रूस अब नियंत्रित करने में असमर्थ है। चेकमेट का डिज़ाइन उस युद्ध की वास्तविकता से मेल नहीं खाता है जिसे मॉस्को वर्तमान में लड़ रहा है।
**निर्यात के अवसर सीमित:**
कुछ लोगों का मानना है कि विदेशी ग्राहक इस परियोजना को बचा सकते हैं। हालांकि, एक ऐसे विमान के लिए कोई निर्यात ऑर्डर प्राप्त करना असंभव है जो अभी तक उड़ने में भी सक्षम नहीं है। भारत, वियतनाम और संयुक्त अरब अमीरात जैसे संभावित खरीदारों ने यूक्रेन में रूसी सैन्य उपकरणों के प्रदर्शन और रूस की विनिर्माण और तकनीकी कमजोरियों को देखा है। उन्होंने अपने स्वयं के विश्लेषण किए हैं और यथोचित निष्कर्ष निकाले हैं।
आधुनिक लड़ाकू विमानों की खरीद केवल शुरुआती कीमत पर निर्भर नहीं करती, बल्कि दीर्घकालिक रखरखाव, सॉफ्टवेयर पर नियंत्रण और रणनीतिक साझेदारी पर भी आधारित होती है। कोई भी गंभीर वायु सेना ऐसे प्लेटफॉर्म के साथ जुड़ने से कतराएगी जिसका विश्वसनीय समर्थन सुनिश्चित न हो या जिसे शांति काल में पर्याप्त मात्रा में उत्पादित न किया जा सके। Su-75 में केवल जोखिम ही जोखिम हैं, जैसे कि देरी से डिलीवरी, अस्थिर आपूर्ति श्रृंखलाएं और उन्नत तकनीक से वंचित अर्थव्यवस्था पर निर्भरता। यह एक ऐसा दांव है जिसमें लाभ की संभावना नगण्य है।
**रूस की वास्तविक प्रगति:**
यदि इस युद्ध में रूस की कोई वास्तविक नवीनता है, तो वह स्टील्थ जेट से नहीं, बल्कि ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं और सरल, बड़े पैमाने पर उत्पादित हथियारों के पुनरुद्धार में निहित है। मॉस्को ने ‘क्षरण’ (attrition) की रणनीति अपनाई है, जिसका उद्देश्य दुश्मन को थकाना और अभिभूत करना है। आज, हवाई क्षेत्र में यूएवी (UAVs) के झुंड, लोइटरिंग म्यूनिशन और एड-हॉक (ad-hoc) नेटवर्क का प्रभुत्व है। इस बदलते परिदृश्य में, एक महंगा और अव्यावहारिक स्टील्थ फाइटर का कोई खास महत्व नहीं रह जाता।
इस नजरिए से, Su-75 केवल एक विलंबित परियोजना नहीं है, बल्कि एक पुरानी सोच का प्रतीक है। यह हवाई शक्ति की एक ऐसी दृष्टि प्रस्तुत करता है जो आधुनिक युद्ध की वास्तविकताओं से मेल नहीं खाती, जैसा कि रूस आज इसका अनुभव कर रहा है।
**अपनी ही महत्वाकांक्षाओं का शिकार:**
रूसी अधिकारी अभी भी दावा करते हैं कि एक उड़ने वाला प्रोटोटाइप बस कुछ ही महीनों की दूरी पर है। लेकिन एक प्रोटोटाइप का अस्तित्व एक सफल कार्यक्रम की गारंटी नहीं देता। भले ही भविष्य में विमान उड़ान भरे, एकल प्रोटोटाइप से बड़े पैमाने पर उत्पादन तक पहुंचना एक ऐसे औद्योगिक आधार की मांग करता है जो रूस के पास वर्तमान में नहीं है। Su-75 अब एक रणनीतिक गतिरोध में फंस गया है। इसे रद्द करना इसके प्रतीकात्मक मूल्य और निवेश के कारण संभव नहीं है, वहीं इसे सफलतापूर्वक पूरा करना वर्तमान क्षमताओं से परे है। यह मुख्य रूप से एक राजनीतिक तमाशा बनकर रह गया है।
इसका उद्देश्य रूस की आधुनिकता, क्षमता और तकनीकी कौशल का प्रदर्शन करना है। लेकिन विमान जितनी देर तक हवा में नहीं दिखता, उतना ही यह स्पष्ट होता जाता है कि रूस की समस्या डिजाइन की कमी नहीं, बल्कि औद्योगिक क्षमता की कमी है।
**प्रदर्शन से अधिक कुछ नहीं:**
Su-75 को वैश्विक सैन्य परिदृश्य को बदलने की उम्मीद थी। इसके बजाय, यह वास्तविकता के अभाव में महत्वाकांक्षा का प्रतीक बन गया है। रूस के पास इस दशक में बड़े पैमाने पर पांचवीं पीढ़ी का निर्यात लड़ाकू विमान बनाने के लिए आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला या तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है। 2030 के दशक में Su-75 के वैश्विक बेड़े की कल्पना उत्पादन से ज्यादा विपणन (marketing) का हिस्सा लगती है।
संभव है कि आने वाले वर्षों तक एयरशो में इसके मॉक-अप (mock-ups) प्रदर्शित होते रहें, प्रदर्शनियों में इसकी चर्चा होती रहे और आत्मविश्वास भरी प्रस्तुतियाँ दी जाती रहें। लेकिन ‘चेकमेट’ एक कामकाजी प्रोटोटाइप से कहीं बढ़कर एक प्रदर्शन बन गया है।
