अरुणाचल प्रदेश के आसमान में इतिहास के सुनहरे अक्षरों में एक नया अध्याय जुड़ गया है। 7,042 मीटर की अविश्वसनीय ऊंचाई पर स्थित माउंट कांगटो, जिसे कभी ‘विजयी’ नहीं माना जाता था, अब भारतीय सेना के वीर जवानों के शौर्य का गवाह बन गया है। पहली बार, इस ‘अजेय’ शिखर पर मानव के पदचिह्न पड़े हैं, जिसे स्थानीय लोग सदियों से एक रहस्य मानते आए थे।
भारतीय सेना के 18 साहसी पर्वतारोहियों की एक टीम ने 3 नवंबर को एक खतरनाक अभियान शुरू किया था। इस दल ने उस दक्षिणी मार्ग को चुना, जो अपनी अत्यधिक तकनीकी कठिनाइयों और निर्मम मौसम के लिए कुख्यात है। पूर्वी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल आरसी तिवारी ने शुक्रवार को इस सफल टीम का स्वागत किया और उनकी “उत्कृष्ट हिम्मत, व्यावसायिक कौशल और कभी हार न मानने वाले जज्बे” की भरपूर प्रशंसा की।
यह अभियान किसी युद्ध से कम नहीं था। 7,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर, पर्वतारोहियों को अत्यधिक कम ऑक्सीजन, जमा देने वाली ठंड, फिसलन भरी बर्फीली ढलानों और अनगिनत बर्फीली दरारों का सामना करना पड़ा। हर कदम पर जान का खतरा था, लेकिन भारतीय सैनिकों ने अपनी असाधारण सहनशक्ति और समर्पण का प्रदर्शन किया।
सेना ने इस उपलब्धि को “भारतीय सेना के गौरवशाली गुणों – अदम्य साहस, अनुशासन, एकजुटता और अटूट संकल्प” का प्रतीक बताया। यह ऐतिहासिक चढ़ाई न केवल एक पर्वत शिखर की विजय है, बल्कि यह उन वीर जवानों को एक श्रद्धांजलि है जो हमेशा देश की सीमाओं की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं।
माउंट कांगटो, जो पूर्वी हिमालय का गौरव है, दशकों से कई पर्वतारोहण प्रयासों को विफल करता रहा है। इसकी दक्षिणी चढ़ाई विशेष रूप से पर्वतारोहण समुदाय में एक किंवदंती बन गई थी। इस विजय ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारतीय सेना की क्षमताएं असीमित हैं और उनके लिए कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। यह उपलब्धि राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण है।
