वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव की आहट सुनाई दे रही है, जहां भारत, रूस और चीन जैसे प्रमुख BRICS देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को कम करने के लिए कमर कस रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया दिल्ली यात्रा इस ‘डी-डॉलरisation’ अभियान का एक अहम पड़ाव थी। इसका मुख्य एजेंडा दोनों देशों के बीच व्यापार को स्थानीय मुद्राओं में बढ़ावा देना और वैश्विक वित्तीय प्रणालियों में डॉलर की भूमिका को कम करना है।
यह प्रयास BRICS समूह के सामूहिक एजेंडे का हिस्सा है। इस समूह के सदस्य देश, जिनमें भारत, रूस और चीन शामिल हैं, पहले से ही अपने व्यापार में राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग को प्रोत्साहित कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पुतिन की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को स्थानीय मुद्राओं में निपटाने के तरीकों पर गहन चर्चा हुई। साथ ही, BRICS देशों के बीच एक साझा मुद्रा की संभावना पर भी विचार-विमर्श हुआ, जिसे चीन का महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त है।
इस दिशा में एक बड़ा कदम नवंबर 2024 में रूस के कज़ान में हुए BRICS शिखर सम्मेलन में देखा गया, जहां राष्ट्रपति पुतिन ने एक प्रस्तावित साझा मुद्रा का प्रोटोटाइप पेश किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका उद्देश्य डॉलर का बहिष्कार करना नहीं, बल्कि सदस्य देशों के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणालियाँ विकसित करना है। पुतिन ने कहा, “हम डॉलर को खत्म नहीं करना चाहते, लेकिन अगर यह हमें स्वतंत्र रूप से व्यापार करने से रोकता है, तो हमें अन्य रास्ते तलाशने होंगे।”
यह प्रस्तावित BRICS मुद्रा सदस्य देशों को आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र बनाने और वर्तमान में अमेरिकी डॉलर के भारी प्रभुत्व वाली वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए एक विकल्प प्रदान करने के लिए है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय का लगभग 89% हिस्सा डॉलर में होता है, और तेल जैसे प्रमुख वैश्विक व्यापार का निपटान भी ऐतिहासिक रूप से डॉलर में ही होता रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में, गैर-डॉलर मुद्राओं में तेल व्यापार का हिस्सा बढ़ा है, जो डॉलर के घटते प्रभाव का संकेत है।
‘डी-डॉलरisation’ की प्रक्रिया का मतलब है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को चरणबद्ध तरीके से कम करना। इसके तहत, सदस्य देश अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग करेंगे, जिससे डॉलर की वैश्विक मांग घटेगी। यह BRICS देशों की वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ाएगा और उन्हें अमेरिकी आर्थिक नीतियों या वैश्विक बाजार की अप्रत्याशित अस्थिरता के प्रभावों से बचाने में मदद करेगा।
अगले वर्ष भारत BRICS शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा, और विशेषज्ञों का मानना है कि इस आयोजन से भारत, रूस और चीन के बीच डॉलर-विरोधी गठबंधन और मजबूत हो सकता है। हाल ही में SCO शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की संक्षिप्त बातचीत को भी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर इसके संभावित प्रभाव के संदर्भ में देखा जा रहा है।
भारत और रूस के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार पहले से ही काफी आगे बढ़ चुका है। रूसी उप प्रधान मंत्री डेनिस मंटुरोव ने नवंबर 2024 में बताया था कि भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 90% अब स्थानीय या वैकल्पिक मुद्राओं के माध्यम से हो रहा है। भारत ने जुलाई 2022 में ही रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चालान और निपटान की अनुमति देकर एक बड़ा कदम उठाया था, जिसके तहत कई भारतीय बैंकों ने विदेशी बैंकों में विशेष ‘रूपी वोस्ट्रो’ खाते खोले हैं।
BRICS देशों को आर्थिक चुनौतियों और कुछ देशों की कठोर विदेश नीतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वे अपनी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने के तरीके खोज रहे हैं। एक साझा BRICS मुद्रा उन्हें डॉलर और यूरो जैसी प्रमुख मुद्राओं पर निर्भरता कम करने, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के प्रभाव को न्यूनतम करने, सीमा-पार लेनदेन को सुचारू बनाने और सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को गहरा करने में मदद कर सकती है।
जाने-माने भू-राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. ब्रह्मचेलानी ने संकेत दिया है कि पुतिन की भारत यात्रा से SWIFT प्रणाली को दरकिनार करने और वैकल्पिक भुगतान तंत्र विकसित करने जैसे महत्वपूर्ण समझौते हो सकते हैं, जो सीधे तौर पर अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देंगे।
हालांकि अमेरिकी डॉलर वर्तमान में दुनिया की प्रमुख आरक्षित मुद्रा बनी हुई है, लेकिन यूरो, येन, पाउंड और युआन जैसी अन्य मुद्राओं के बढ़ते प्रभाव के कारण इसका शेयर धीरे-धीरे कम हो रहा है। अमेरिकी संरक्षणवादी व्यापार नीतियां भी BRICS देशों को डॉलर-वैकल्पिक रणनीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यह लक्ष्य भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा व्यक्त किया गया है और इसे प्राप्त करने योग्य माना जा रहा है। राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, BRICS एकीकरण और डॉलर के विकल्पों पर होने वाली चर्चाएं आने वाले वर्षों में वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की दिशा तय कर सकती हैं।
