भारत के विमान वाहक पोतों (aircraft carriers) का इतिहास दर्शाता है कि देश ने कैसे अपनी नौसैनिक शक्ति को बढ़ाया है। शुरुआती दौर में खरीदे गए और पुराने जहाजों को नया जीवन देने से लेकर, भारत में ही बड़े और आधुनिक वाहक बनाने तक का सफर तय किया गया है। यह यात्रा INS विक्रांत के साथ शुरू हुई और अब INS विशाल जैसे भविष्य के सुपर-वाहक की परिकल्पना तक पहुँच चुकी है।
नई दिल्ली:
भारतीय नौसेना का विमान वाहक बेड़ा एक निरंतर विकास की यात्रा पर है। 1961 में सेवा में आए पहले INS विक्रांत ने देश में वाहक संचालन की नींव रखी। इसके बाद INS विराट जैसे जहाजों ने नौसेना की युद्धक रणनीति और समुद्री शक्ति को परिष्कृत किया।
यह बेड़े का विकास नौसैनिक सिद्धांतों में आए बदलावों, औद्योगिक क्षमताओं में वृद्धि, तकनीकी नवाचारों और साथ ही वित्तीय एवं रणनीतिक प्राथमिकताओं के समायोजन का प्रमाण है।
INS विक्रमदित्य, जो मूल रूप से सोवियत काल का एक जहाज ‘एडमिरल गोर्शकोव’ था, उसे रूस में व्यापक रूप से नवीनीकृत किया गया। 16 नवंबर 2013 को इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया और 2014 में इसने विधिवत कार्यभार संभाला, जिससे यह भारतीय नौसेना के लिए एक प्रमुख विमान वाहक बन गया।
INS विक्रांत (IAC 1) भारत का पहला स्वदेशी विमान वाहक है। इसका डिज़ाइन नौसेना युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया था और इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में हुआ। 2 सितंबर 2022 को इसे भारतीय नौसेना में कमीशन किया गया। सरकार ने इसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में सराहा है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह स्वदेशी रूप से निर्मित भारत का अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है, जिसमें बड़े पैमाने पर घरेलू कल-पुर्जों का इस्तेमाल हुआ है।
INS विक्रांत की खूबियाँ:
यह भारत में निर्मित पहला बड़ा विमान वाहक है, जिसने देश की जहाज निर्माण क्षमता, सिस्टम एकीकरण कौशल और स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं के नेटवर्क को प्रदर्शित किया है। यह STOBAR (Short Take-Off But Arrested Recovery) तकनीक का उपयोग करता है, जिसमें मिग-29K लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों का एक मिश्रित बेड़ा संचालित किया जाता है।
भविष्य की ओर: INS विशाल (IAC 2/IAC 3) की योजना
अगला कदम एक विशालकाय विमान वाहक, जिसे INS विशाल के नाम से जाना जा रहा है, के रूप में देखा जा रहा है। इसका अनुमानित विस्थापन 60,000 से 65,000 टन के बीच होगा। इस वाहक का मुख्य उद्देश्य CATOBAR (Catapult Assisted Take-Off But Arrested Recovery) प्रणाली को अपनाना है। यह तकनीक वाहक की क्षमता को काफी बढ़ा देती है, जिससे यह भारी और अधिक उन्नत विमानों को संचालित करने में सक्षम होगा।
नौसेना द्वारा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) जैसी उन्नत तकनीकों का मूल्यांकन किया जा रहा है। वरिष्ठ अधिकारी इस तकनीक की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। EMALS के माध्यम से कैटापुल्ट लॉन्च की क्षमता हासिल करना नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, हालांकि इसके लिए तकनीकी और कूटनीतिक बाधाओं को दूर करना होगा।
चुनौतियाँ और वर्तमान स्थिति:
STOBAR से CATOBAR प्रणाली में परिवर्तन, विशेष रूप से EMALS जैसी उन्नत तकनीकों को शामिल करना, साथ ही परमाणु प्रणोदन जैसे विकल्पों पर विचार करने से परियोजना की जटिलता, लागत और तकनीकी निर्भरता बढ़ जाती है। यही कारण है कि INS विशाल का निर्माण अभी भी एक अध्ययन परियोजना के चरण में है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि नौसेना इस महत्वाकांक्षी परियोजना की योजना पर काम कर रही है, लेकिन बजट की कमी या अन्य प्राथमिकताओं के कारण इसमें देरी या पुनर्विचार की संभावना बनी हुई है।
भारत की समुद्री रणनीति में वाहकों का महत्व:
विमान वाहक भारत की समुद्री हवाई शक्ति के विस्तार और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की उपस्थिति को मजबूत करते हैं, समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और जरूरत पड़ने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सहायता प्रदान करते हैं। यही वजह है कि भारत स्वदेशी विमान वाहक बनाने और अपनी जहाज निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।
मुख्य बिंदु:
भारत का विमान वाहक कार्यक्रम खरीदे गए जहाजों से शुरू होकर, नवीनीकरण और अब पूरी तरह से स्वदेशी निर्माण तक पहुँचा है। 2022 में INS विक्रांत का कमीशन घरेलू रक्षा उद्योग के लिए एक बड़ी सफलता थी।
INS विशाल अभी भी एक प्रस्तावित परियोजना है, जिसका निर्माण कार्य अंतिम रूप से स्वीकृत नहीं हुआ है। नौसेना 60,000 टन से अधिक क्षमता वाले CATOBAR वाहक के लिए उत्सुक है और EMALS जैसी तकनीकों पर विचार कर रही है। हालांकि, इसके प्रणोदन, कैटापुल्ट प्रणाली और समग्र अनुमोदन जैसे महत्वपूर्ण निर्णय अभी भी तकनीकी, राजनयिक और वित्तीय पहलुओं पर निर्भर करते हैं। निर्माण शुरू करने से पहले विस्तृत डिजाइन और सरकारी मंजूरी आवश्यक होगी।
