भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक अंतरिक्ष सहयोग के तहत, मॉस्को ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को अपने अत्यंत उन्नत RD-191M अर्ध-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन की 100% प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मंजूरी दे दी है। यह डील भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बड़ी क्रांति ला सकती है।
यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भारत के लिए गेम-चेंजर क्यों है, इसे समझना महत्वपूर्ण है:
RD-191M की शक्ति और तकनीक:
RD-191M, रूस का एक शक्तिशाली अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन है। क्रायोजेनिक इंजनों के विपरीत, जो तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, यह इंजन ईंधन के रूप में RP-1 (एक प्रकार का केरोसिन) और ऑक्सीडाइज़र के रूप में तरल ऑक्सीजन (LOX) पर काम करता है। इस इंजन की मुख्य विशेषता इसकी अत्यधिक शक्ति है, जो एक इकाई में लगभग 192 टन का थ्रस्ट पैदा करती है। रूसी अंगारा रॉकेट श्रृंखला में इस इंजन परिवार का व्यापक रूप से उपयोग होता है।
ISRO के लिए रणनीतिक फायदे:
इसरो इस नई तकनीक को अपने गगनचुंबी लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (GSLV Mk3) की भारोत्तोलन क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करेगा। वर्तमान में LVM3 अपने ऊपरी चरण के लिए स्वदेशी CE-20 क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करता है। RD-191M जैसे उन्नत अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन के उपयोग से रॉकेट के निचले चरणों की शक्ति बढ़ेगी, जिससे रॉकेट की कुल पेलोड क्षमता में भारी वृद्धि होगी।
यह कदम भारत को अपने सबसे भारी उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों पर निर्भरता कम करने में मदद करेगा। साथ ही, यह भारत को वैश्विक वाणिज्यिक अंतरिक्ष बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा, क्योंकि इसरो अब अधिक मूल्यवान और भारी पेलोड को विभिन्न देशों के लिए ले जा सकेगा, जिससे अच्छी आय होगी।
पेलोड क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि:
RD-191M इंजन को शामिल करने से भारत के मौजूदा लॉन्च वाहनों की प्रदर्शन क्षमता में तुरंत काफी सुधार होगा। वर्तमान में, LVM3 भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा (GTO) में लगभग 4.2 टन का पेलोड ले जा सकता है। RD-191M के साथ, यह क्षमता बढ़कर 6.5 से 7 टन तक पहुंच सकती है, जो कि प्रति लॉन्च 2.5 से 3 टन की महत्वपूर्ण वृद्धि है। यह बढ़ी हुई क्षमता अगली पीढ़ी के भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ-साथ भविष्य के चंद्रयान मिशनों और मानवयुक्त गगनयान मिशन जैसे जटिल अंतरग्रहीय अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भरता:
इस समझौते का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह भारत में उच्च-तकनीकी अंतरिक्ष विनिर्माण में ‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा को साकार करेगा। रिपोर्टों के अनुसार, ये शक्तिशाली इंजन भारत में ही निर्मित किए जाएंगे, जिसमें HAL और ISRO एक नई उत्पादन सुविधा स्थापित करेंगे। 100% प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से भारत न केवल इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि भविष्य में इन इंजनों का निर्यात करने की क्षमता भी हासिल कर सकता है। यह भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करेगा जिनके पास अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन बनाने की क्षमता है।
भविष्य की योजना (2026-2030):
भारत और रूस के बीच इस सौदे पर अंतिम बातचीत जारी है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रक्रिया 2026-27 तक शुरू होने की संभावना है। इसरो का लक्ष्य 2030 तक भारत में निर्मित अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन को तैयार करना है। इसरो के वैज्ञानिक इस प्रगति को लेकर बेहद उत्साहित हैं, क्योंकि उनका मानना है कि RD-191M भारत के भविष्य के भारी-लिफ्ट रॉकेट और मानव अंतरिक्ष कार्यक्रमों को महत्वपूर्ण गति प्रदान करेगा।
