पाकिस्तान की सत्ता संरचना में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जहाँ सेना का प्रभाव निर्णायक रूप से बढ़ गया है। यह नई स्थिति, विशेष रूप से भारत के लिए, सीमा पर सुरक्षा चिंताओं और संभावित आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि ला सकती है।
हालिया 27वें संवैधानिक संशोधन को पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जिसे कुछ लोग ‘संवैधानिक कब्जा’ कह रहे हैं। इस कानून ने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को असाधारण अधिकार प्रदान किए हैं, जिसमें उन्हें कानूनी कार्रवाई से छूट, आजीवन पद और न्यायपालिका में हस्तक्षेप की शक्ति शामिल है। यह व्यवस्था उन्हें पाकिस्तान का सबसे प्रभावी शासक बनाती प्रतीत होती है।
इसके साथ ही, देश में राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई तेज हो गई है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान, जो 2024 के चुनावों में अपनी पार्टी की मजबूत जीत के बावजूद जेल में हैं, को कड़े एकांतवास में रखा गया है। उनके परिवार और पार्टी के प्रमुख सदस्यों को उनसे मिलने की अनुमति मिलने में कठिनाई हो रही है। उनकी संभावित मृत्यु की अफवाहों ने देश भर में उनके समर्थकों को विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद ही उनकी बहन को उनसे मिलकर उनके जीवित होने की पुष्टि करने का मौका मिला।
पाकिस्तान का नागरिक नेतृत्व भी सेना के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने में विफल रहने के कारण आलोचना झेल रहा है। ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता हासिल करने या बनाए रखने के लिए सेना का समर्थन प्राप्त किया है, जिसने लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया है और सेना को अंतिम शक्ति का स्रोत बना दिया है।
जनरल मुनीर की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बढ़ती दृश्यता, जिसमें अमेरिकी नेताओं से मुलाकातें और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनका नामांकन शामिल है, पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता को कम नहीं कर पाई है। अफगानिस्तान के साथ सीमा पर डूरंड लाइन विवाद के कारण तनाव बना हुआ है, और खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में उग्रवाद की घटनाएं जारी हैं। देश की अर्थव्यवस्था भी आर्थिक दबावों से जूझ रही है, जो एक ‘सुरक्षा-प्रथम’ दृष्टिकोण से और बढ़ गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सेना आंतरिक असंतोष से निपटने के लिए बातचीत या लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बजाय सैन्य शक्ति पर अधिक निर्भर हो रही है। यह नीति पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दों को और गंभीर बना सकती है और इसके प्रत्यक्ष परिणाम भारत को भुगतने पड़ सकते हैं।
एक अधिक सैन्यवादी पाकिस्तान, विश्लेषकों की मानें तो, भारत के साथ सीमा पर बढ़े हुए तनाव और आतंकी हमलों के बढ़ते जोखिम का सीधा संकेत है। जैसे-जैसे पाकिस्तानी सेना अपनी शक्ति का विस्तार कर रही है, भारत को भविष्य में एक अधिक चुनौतीपूर्ण और अप्रत्याशित पड़ोसी का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
