दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक परिदृश्य में रूस द्वारा भारत के साथ हस्ताक्षरित एक नए सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौते ने हलचल मचा दी है। रूस की संसद, स्टेट ड्यूमा, ने ‘ the Reciprocal Exchange of Logistic Support (RELOS)’ समझौते को मंजूरी दे दी है, जो दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। इस महत्वपूर्ण समझौते पर राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से पूर्व ही मुहर लग गई है।
RELOS एक अभूतपूर्व समझौता है जो दोनों देशों को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों का उपयोग करने की व्यापक सुविधा प्रदान करता है। इसका अर्थ है कि भारतीय नौसेना के जहाज अब रूसी बंदरगाहों पर सहजता से डॉक कर सकेंगे और रूसी युद्धपोतों को भारतीय बंदरगाहों पर प्राथमिकता मिलेगी। इसी तरह, भारतीय वायु सेना के विमानों को रूसी हवाई क्षेत्र का उपयोग करने में कोई बाधा नहीं आएगी।
रूस के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को गहरा करेगा और इसे रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक ले जाएगा। यह सैन्य आदान-प्रदान, प्रशिक्षण, मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में प्रभावी सहयोग को सुनिश्चित करेगा।
इस समझौते का सबसे बड़ा रणनीतिक लाभ यह है कि यह दोनों देशों की सेनाओं के बीच पूर्ण अंतरसंचालनीयता (interoperability) सुनिश्चित करता है। इसका मतलब है कि वे किसी भी आपातकालीन स्थिति या संयुक्त सैन्य अभियान में एक-दूसरे के संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते का सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा। जहां पाकिस्तान चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में लगा है, वहीं भारत ने रूस जैसे शक्तिशाली सैन्य साझेदार के साथ अपनी पहुंच बढ़ा ली है। यह कदम पाकिस्तान के लिए सुरक्षा की दृष्टि से एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है, खासकर तब जब दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंध हैं।
राष्ट्रपति पुतिन की आगामी भारत यात्रा के ठीक पहले इस समझौते का क्रियान्वयन, इसे एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बनाता है। यह स्पष्ट करता है कि रूस और भारत द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और इस सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौते से क्षेत्र में शक्ति का संतुलन भारत के पक्ष में झुक सकता है।
