भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्देश जारी करते हुए देश भर के सभी निजी, गैर-सरकारी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में गहन जांच का आदेश दिया है। इस कदम के माध्यम से केंद्र, राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को इन संस्थानों के गठन, संचालन और प्राप्त लाभों से संबंधित व्यापक जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।
यह निर्देश एक छात्रा, आयशा जैन के मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसने एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा पर उसके नाम को आधिकारिक रिकॉर्ड में न बदलने का आरोप लगाया था। इस छात्रा की समस्या ने उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी को उजागर किया है, जिससे अब पूरे देश में एक व्यापक ऑडिट का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
आयशा जैन, जिसका पूर्व नाम खुशी जैन था, को अपने नाम के परिवर्तन को विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में दर्ज कराने में काफी परेशानी हुई। इस घटना ने दर्शाया कि कैसे कई संस्थान छात्र-छात्राओं की जायज शिकायतों पर उचित ध्यान नहीं देते, जिससे गंभीर अकादमिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इस व्यक्तिगत शिकायत ने एक राष्ट्रीय चिंता का रूप ले लिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रत्येक विश्वविद्यालय से निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में विस्तृत जानकारी और स्पष्टीकरण मांगा है:
* **स्थापना का आधार:** विश्वविद्यालयों को यह बताना होगा कि उनकी स्थापना किन नियमों और कानूनी प्रावधानों के तहत हुई, और उन्हें सरकार से क्या विशेष अधिकार या आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है।
* **प्रशासनिक संरचना:** उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों, निर्णय लेने वाली समितियों और शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया का पूरा विवरण प्रस्तुत करना होगा।
* **छात्र एवं फैकल्टी प्रबंधन:** प्रवेश नीति, शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया, और दैनिक शैक्षणिक गतिविधियों के प्रबंधन के बारे में जानकारी मांगी गई है, जिसमें निष्पक्षता और गैर-भेदभाव को सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है।
**वित्तीय अनियमितताओं पर पैनी नजर:** न्यायालय ‘नो-प्रॉफिट, नो-लॉस’ के सिद्धांत की सत्यता की जांच करेगा। विश्वविद्यालयों को अपने वित्तीय रिकॉर्ड प्रस्तुत करने होंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि धन का उपयोग केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए हो रहा है और किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत लाभ अर्जित नहीं किया जा रहा। इसमें कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य गैर-शैक्षणिक व्यय का भी विस्तृत विश्लेषण शामिल है।
**UGC की भूमिका और जवाबदेही:** सुप्रीम कोर्ट ने UGC को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने और अपनी नियामक शक्तियों के प्रभावी कार्यान्वयन का प्रमाण देने का निर्देश दिया है। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, UGC अध्यक्ष को स्वयं एक हलफनामे पर हस्ताक्षर करने होंगे, जो नियामक संस्था की प्रत्यक्ष जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। अंततः, इसका उद्देश्य यह स्थापित करना है कि सभी संस्थानों में एक प्रभावी छात्र शिकायत निवारण तंत्र मौजूद हो, ताकि किसी भी एक छात्र की समस्या व्यापक प्रणालीगत विफलता का प्रतीक न बने।
