रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को दिखाया है कि आधुनिक युद्ध का मैदान अब सिर्फ महंगे और जटिल हथियारों का नहीं रहा। यूक्रेन ने ‘फ्लेमिंगो’ (FP-5 Flamingo) नामक एक ऐसी क्रूज मिसाइल विकसित की है, जो पुराने और बेकार माने जाने वाले पुर्जों से बनी है, लेकिन यह रूस के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है और अमेरिकी रक्षा योजनाकारों के लिए भी एक आश्चर्य का विषय है। सैनिकों के बीच ‘कबाड़ मिसाइल’ के नाम से मशहूर, यह हथियार अब युद्धक्षेत्र में सबसे प्रभावी साबित हो रहा है।
**नया सुपरवेपन: फ्लेमिंगो का जन्म:**
‘फ्लेमिंगो’ मिसाइल का निर्माण यूक्रेन की फायर पॉइंट कंपनी ने किया है, जिसका उद्देश्य युद्ध की परिस्थितियों में भी प्रभावी और आसानी से उपलब्ध होने वाले हथियार बनाना है। इस मिसाइल ने अपनी पहली ही कार्रवाई में अपनी क्षमता साबित कर दी, जब तीन ‘फ्लेमिंगो’ ने एक रूसी नौसैनिक अड्डे पर हमला कर छह होवरक्राफ्ट नष्ट कर दिए। इसने विदेशी पर्यवेक्षकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यूक्रेन ने सिर्फ एक अस्थायी समाधान नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली हथियार प्रणाली विकसित की है।
यह मिसाइल रूसी तेल रिफाइनरियों पर भी बार-बार हमले कर चुकी है, जिससे भीषण आग लगी। ‘फ्लेमिंगो’ की प्रभावशीलता इसके अपरंपरागत और सरल डिजाइन में निहित है।
**’कबाड़’ से ‘घातक’ तक:**
रक्षा विश्लेषक ‘फ्लेमिंगो’ को ‘कबाड़ मिसाइल’ कहते हैं क्योंकि इसका डिजाइन पारंपरिक मिसाइल इंजीनियरिंग के सभी नियमों को तोड़ता है। पहला, इसका इंजन बाहर की तरफ लगा होता है, जिससे किसी भी उपलब्ध हल्के जेट इंजन का उपयोग संभव है। यूक्रेन पुराने चेकोस्लोवाक एल-39 ट्रेनर विमानों के एल-25 इंजन का इस्तेमाल कर रहा है, जिससे उत्पादन लागत नगण्य हो जाती है।
दूसरा, इसका वॉरहेड सोवियत-युग के 1000 किलोग्राम के एफएबी-1000 हवाई बम पर आधारित है, जो अमेरिकी टोमैहॉक की तुलना में दोगुना विनाशकारी है। यूक्रेन के पास इन पुराने बमों का विशाल भंडार है।
तीसरा, मिसाइल का ढांचा कार्बन फाइबर से एक ही टुकड़े में बनाया गया है, जो इसे हल्का, मजबूत और बहुत तेजी से उत्पादन योग्य बनाता है। यह पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाता है।
**फ्लेमिंगो बनाम टोमैहॉक: एक तुलना:**
‘फ्लेमिंगो’ की रेंज लगभग 2000 मील है, जो टोमैहॉक की 1000 मील की रेंज से दोगुनी है। इसका पेलोड भी लगभग 2300 पाउंड (एक टन) है, जबकि टोमैहॉक का पेलोड लगभग 1000 पाउंड होता है। सबसे बड़ा अंतर लागत में है। जहाँ टोमैहॉक की कीमत करीब 2.1 मिलियन डॉलर है, वहीं ‘फ्लेमिंगो’ की लागत इसका पाँचवां हिस्सा है। उत्पादन दर भी अविश्वसनीय है। अमेरिका सालाना सीमित संख्या में टोमैहॉक बनाता है, जबकि यूक्रेन की फायर पॉइंट टीम प्रतिदिन एक ‘फ्लेमिंगो’ बना रही है और इसे प्रति दिन सात तक ले जाने की तैयारी है।
**भविष्य की युद्ध रणनीति का नया मॉडल:**
‘फ्लेमिंगो’ ने अमेरिका को यह अहसास कराया है कि भविष्य के युद्धों में ‘कुछ लेकिन अत्यधिक उन्नत’ हथियारों की नीति टिकाऊ नहीं है। अब उन देशों की जीत होगी जो हथियारों का उत्पादन बड़ी संख्या में कर सकते हैं। अमेरिकी रणनीतिज्ञों ने ‘सस्ती विशालता’ (affordable mass) की नीति अपनाई है, जिसमें हजारों की संख्या में हथियार बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यूक्रेन का ‘फ्लेमिंगो’ इस नई सोच का प्रतीक है, जिसने दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं के विचार को चुनौती दी है और भविष्य की युद्ध रणनीति को नया आकार दिया है।
