दिल्ली के चांदनी चौक में हुए कार बम विस्फोट के पीछे का मास्टरमाइंड, डॉ. उमर उन नबी, एक ऐसा आतंकवादी था जिसने अपनी पहचान को अपने घातक मंसूबों पर पर्दा डालने के लिए इस्तेमाल किया। एक डॉक्टर और उच्च शिक्षित पेशेवर के भेष में, वह एक चलते-फिरते ‘बम-मेकिंग फैक्ट्री’ को अपनी सूटकेस में लेकर घूमता था, जो किसी भी सामान्य स्थान को चंद मिनटों में तबाही का केंद्र बना सकती थी। सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक चौंकाने वाला खुलासा है कि कैसे विज्ञान और शिक्षा का इस्तेमाल विनाश के लिए किया जा सकता है।
यह कोई गली-कूचे का अपराधी नहीं था, बल्कि एक ‘व्हाइट-कॉलर’ आतंकी था जो आसानी से यात्रा करता था, विश्वविद्यालय के छात्रावासों में रहता था, और अपनी सामान्य दिनचर्या के बीच घातक रसायनों के साथ प्रयोग करता था। उसके साथी उसे एक मेहनती चिकित्सक समझते थे, लेकिन असलियत कहीं ज़्यादा भयावह थी। इस ऑपरेशन की नवीनता और विस्तार ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को हिला दिया है।
**कहीं भी, कभी भी IED बनाने में माहिर**
फरीदाबाद में पकड़े गए आतंकवादी मॉड्यूल के सदस्यों से हुई पूछताछ में डॉ. उमर की खतरनाक गतिविधियों का पता चला है। खुफिया सूत्रों के अनुसार, वह हमेशा एक बड़ी सूटकेस साथ रखता था, जो असल में उसका मोबाइल प्रयोगशाला थी। इसमें विस्फोटक बनाने के लिए ज़रूरी सभी रसायन, उपकरण और अन्य सामग्रियां शामिल थीं, जिससे वह कहीं भी, किसी भी समय इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) तैयार कर सकता था।
पुलिस द्वारा उसकी सूटकेस से बरामद विस्फोटक सामग्री ने यह साबित कर दिया कि वे एक अत्यंत प्रशिक्षित आतंकवादी का सामना कर रहे थे, जो किसी भी जगह को मिनटों में बारूदी सुरंग में बदल सकता था।
**विश्वविद्यालय परिसर में खतरनाक प्रयोग**
आतंकवादी मॉड्यूल का सदस्य मुजम्मिल शकील, जो अल-फलाह विश्वविद्यालय में एक डॉक्टर भी है, ने कबूल किया है कि डॉ. उमर ने अपने विश्वविद्यालय के कमरे का इस्तेमाल छोटे पैमाने पर रासायनिक परीक्षणों के लिए किया था। जहाँ सामान्य छात्र जीवन बचाने के गुर सीखते हैं, वहीं उमर लोगों की जान लेने के तरीकों पर शोध कर रहा था। वह उसी परिसर में काम करता था और अपने कमरे में बमों के लिए आवश्यक रसायनों को मिलाने की विधि को अंतिम रूप देता था।
**जैश-ए-मोहम्मद का महत्वपूर्ण सदस्य**
पूछताछ में यह भी सामने आया है कि मुजम्मिल शकील को इस आतंकी समूह में जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा मौलवी इरफान अहमद नामक व्यक्ति ने शामिल किया था। उमर को इस सेल का ‘अमीर’ यानी सरगना माना जाता था। उसकी बातों का हर कोई सम्मान करता था और उसके निर्देशों का पालन करता था, क्योंकि वह अपने ज्ञान और इरादे में बेहद दृढ़ था।
**चांदनी चौक विस्फोट का अधूरा IED**
जांचकर्ताओं को पता चला है कि उमर ने चांदनी चौक में हुए विस्फोट में इस्तेमाल की गई कार में एक अधूरा IED रखा था। उसने एसिटोन (नेल पॉलिश रिमूवर) और पिसी हुई चीनी जैसे आम घरेलू सामानों को मिलाकर विस्फोटक तैयार किया था, जो उसकी वैज्ञानिक क्षमता और विनाशकारी इरादे को दर्शाता है।
**कश्मीर में बड़े हमले की थी योजना**
खुफिया जानकारी के मुताबिक, प्रारंभिक योजना हरियाणा में बनाए गए विस्फोटकों को जम्मू और कश्मीर ले जाकर वहां एक बड़े हमले को अंजाम देने की थी। जब यह योजना नाकाम हो गई, तो उसने स्थानीय स्तर पर IED बनाने के लिए मेवात-नूंह क्षेत्र से यूरिया का इंतजाम करना शुरू कर दिया।
**बहुभाषी, बुद्धिमान, लेकिन क्रूर**
मुजम्मिल शकील ने बताया कि डॉ. उमर नौ भाषाओं का ज्ञाता था और रसायन विज्ञान व विस्फोटकों के बारे में उसकी समझ किसी विशेषज्ञ जैसी थी। “हम उमर के तर्कों का खंडन नहीं कर पाते थे। वह हमेशा शोध और तथ्यों के साथ बात करता था। वह खुद को अमीर कहता था और अंत तक यही कहता रहा कि उसका सब काम धर्म के लिए है,” मुजम्मिल ने बताया।
**आतंकवाद का नया, पढ़ा-लिखा चेहरा**
यह ‘व्हाइट-कॉलर’ आतंकवाद का सबसे खतरनाक रूप है। एक योग्य डॉक्टर, एक विद्वान, जो विज्ञान, धर्म और दर्शन पर आसानी से चर्चा कर सकता है, और फिर भी, एक निर्दयी आतंकवादी जिसने मौत का सूटकेस छुपा रखा था।
डॉ. उमर उन नबी का मामला यह साबित करता है कि आतंकवाद का सबसे खूंखार चेहरा हमेशा फटे कपड़ों और हथियारबंद वर्दी में नहीं होता। कभी-कभी यह एक सफेद कोट, एक मेडिकल डिग्री और महंगे सामान में छिपा होता है।
