जमशेदपुर में स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट और नेचर फाउंडेशन द्वारा आयोजित चतुर्थ बाल मेले में ‘डिजिटल युग में बचपन और सोशल मीडिया’ विषय पर हुई भाषण प्रतियोगिता ने बच्चों के मन की गहराइयों को उजागर किया। बच्चों ने खुलकर अपनी व्यथा बताई कि कैसे सोशल मीडिया और डिजिटल दुनिया उनके बचपन को छीन रही है और कई मानसिक समस्याओं को जन्म दे रही है।
प्रतिभागियों ने चिंता जताई कि आज के बच्चे अकेलापन, अवसाद और चिड़चिड़ापन जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। मोबाइल पर गेम खेलना उनके लिए आम हो गया है, जबकि असली खेल मैदानों में बच्चों की आवाज़ें कम सुनाई देती हैं। यह वर्चुअल दुनिया की चकाचौंध उन्हें वास्तविक जीवन से दूर ले जा रही है, जिससे वे ‘असली खेल’ के महत्व से अनजान हो रहे हैं। यह बच्चों के बचपन में आई इस परेशानी का एक बड़ा कारण है।
बच्चों ने महसूस किया कि डिजिटल युग ने बचपन की परिभाषा ही बदल दी है। जहाँ पहले सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेलना, बातें करना आम था, वहीं अब सब कुछ मोबाइल पर सिमट गया है। व्हाट्सएप और अन्य मैसेजिंग ऐप पर बातचीत होती है, जिससे व्यक्तिगत मेलजोल कम हो गया है। वीडियो कॉल से शिक्षा भले ही मिल जाए, पर कक्षा में गुरु-शिष्य परंपरा से मिलने वाला ज्ञान और अनुभव उससे कोसों दूर है। साइबर बुलिंग का डर भी बच्चों को लगातार सता रहा है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह सामने आई कि आधुनिक जीवनशैली बच्चों को प्राकृतिक आनंद से वंचित कर रही है। वे शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे हैं और उनकी आँखों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। प्रतिदिन 4 से 6 घंटे स्क्रीन के सामने बिताना एक गंभीर चिंता का विषय है। बच्चों ने दोहरी दुनिया – वास्तविक और डिजिटल – का उल्लेख किया और कहा कि हमें डिजिटल दुनिया के अच्छे पहलुओं को अपनाते हुए, असली दुनिया से जुड़ना होगा।
बच्चों ने अतीत की यादें ताज़ा करते हुए कहा कि पहले किताबों की दुनिया में एक अलग ही आकर्षण, एक खास सुगंध और मिट्टी की महक थी। आज का तकनीकी युग उन्हें एक ऐसे रास्ते पर ले जा रहा है जहाँ स्पष्टता कम और अंधकार ज़्यादा है। उन्हें आज भी उस मिट्टी की महक और प्राकृतिक जीवन की तलाश है।
भाषणों में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि डिजिटल दुनिया के फायदे और नुकसान दोनों हैं। चुनाव हमारा होना चाहिए। शारीरिक श्रम की कमी और वर्चुअल निर्भरता का बढ़ना एक चिंतनीय पहलू है। वो दिन लद गए जब बच्चे गलियों में खेलते थे, शोर मचाते थे और लुका-छिपी जैसे खेल खेलते थे। अब मोबाइल की लत ने बच्चों को अपने माता-पिता से भी दूर कर दिया है। मोबाइल के विवेकपूर्ण उपयोग से ही जीवन में सुख और शांति आ सकती है।
बच्चों ने स्वीकार किया कि एक क्लिक पर दुनिया की जानकारी मिल जाती है, लेकिन इसी डिजिटल दुनिया का अभिशाप है कि एक क्लिक में धन भी गँवाया जा सकता है। उन्होंने सोशल मीडिया के इस्तेमाल को अत्यंत खतरनाक बताया, विशेषकर युवाओं के लिए। सोशल मीडिया पर व्यक्ति इतना खो जाता है कि उसे अपने आस-पास क्या हो रहा है, इसका पता ही नहीं चलता। यह व्यक्तित्व को निखारने के बजाय बिगाड़ रहा है। प्रेम-प्रसंगों का फूहड़ प्रदर्शन और अपनी काल्पनिक दुनिया का प्रदर्शन, अंततः निराशा की ओर ले जाता है।
बच्चों ने यह बड़ा प्रश्न उठाया कि आखिर सोशल मीडिया पर फर्जी पहचान का क्या औचित्य है? उन्होंने सभी से आग्रह किया कि सोशल मीडिया का प्रयोग सोच-समझकर करें और किसी भी निजी या महत्वपूर्ण दस्तावेज को साझा करने से बचें। इस प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।
