बांग्लादेश की राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश की अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला जहां कुछ लोगों के लिए न्याय की जीत है, वहीं कई इसे राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम मान रहे हैं।
खास बात यह है कि हसीना इस समय कथित तौर पर भारत में हैं, जिससे भारत सरकार के सामने कूटनीतिक और कानूनी सवाल खड़े हो गए हैं। क्या भारत, प्रत्यर्पण संधि के तहत हसीना को बांग्लादेश को सौंपेगा?
**सजा का आधार: 2024 का छात्र आंदोलन**
ढाका में ICT ने हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया है। यह आंदोलन शुरू में नौकरी-कोटा प्रणाली के खिलाफ था, लेकिन जल्द ही यह सरकार विरोधी प्रदर्शनों में तब्दील हो गया। इस दौरान कई छात्रों, प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के सदस्यों की जान गई।
**हसीना पर लगे गंभीर आरोप**
न्यायाधिकरण ने हसीना पर हत्याओं का आदेश देने, हिंसा भड़काने वाले भाषण देने, न्याय में बाधा डालने और सबूत नष्ट करने की कोशिश करने जैसे संगीन आरोप लगाए हैं। छात्र अबू सईद की हत्या और चांगरपुल में पांच लोगों की हत्या व उनके शवों को जलाने के मामले में भी उन्हें दोषी पाया गया है। इन्हीं आरोपों के तहत उन्हें मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
**अपील की शर्त: स्वदेश वापसी अनिवार्य**
हालांकि हसीना को सजा के खिलाफ अपील करने का अधिकार है, लेकिन एक बड़ी शर्त यह है कि उन्हें अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा। इसका मतलब है कि उन्हें बांग्लादेश वापस लौटना होगा, जबकि उन्होंने ऐसी कोई मंशा जाहिर नहीं की है। हसीना ने इस फैसले को ‘राजनीतिक और पक्षपाती’ करार देते हुए कहा है कि उन्हें अपना बचाव करने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अदालत में सुनवाई की मांग की है।
**भारत के लिए प्रत्यर्पण का पेंच**
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है, जो 2013 की प्रत्यर्पण संधि का हवाला दे रहे हैं। लेकिन, इस संधि में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो कहता है कि राजनीतिक अपराधों के मामलों में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। हसीना द्वारा अपने मामले को राजनीतिक करार दिए जाने के बाद, भारत के लिए उन्हें सौंपना एक जटिल निर्णय होगा।
**ICT की विश्वसनीयता पर सवाल**
अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) खुद विवादों में घिरी रही है। इसे मूल रूप से 1971 के युद्ध अपराधों के लिए स्थापित किया गया था। लेकिन हाल ही में, मौजूदा सरकार ने इसमें संशोधन कर इसे नए मामलों, जैसे कि 2024 के छात्र आंदोलन, के लिए भी लागू कर दिया। न्यायाधीशों और अभियोजकों की नियुक्ति भी अंतरिम सरकार द्वारा की जाती है, जिससे इसकी निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो रहा है। इसे ‘कंगारू कोर्ट’ तक कहा जा रहा है।
**बढ़ता राजनीतिक तनाव**
इस फैसले के बाद बांग्लादेश में हसीना के समर्थकों का विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है। देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इस नाजुक स्थिति में, भारत का कदम कूटनीति, कानून और क्षेत्रीय स्थिरता के बीच संतुलन साधने वाला होगा।
