बांग्लादेश की राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया जब अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सज़ा सुनाई। इस फैसले के तुरंत बाद, हसीना ने एक कड़ा बयान जारी करते हुए ट्रिब्यूनल को ‘पक्षपाती’, ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘अवैध’ करार दिया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय एक ऐसी सरकार द्वारा लिया गया है जो लोगों द्वारा चुनी नहीं गई है और जिसका कोई लोकतांत्रिक अधिकार नहीं है। हसीना के अनुसार, यह केवल राजनीतिक षड्यंत्र है जिसका उद्देश्य उनके दल, आवामी लीग, की आवाज़ को दबाना है।
हसीना ने किसी भी तरह के हत्या के आदेश देने के आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा, “मैं अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज करती हूं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि जुलाई और अगस्त 2025 में हुई घटनाओं के लिए कोई भी राजनीतिक नेता जिम्मेदार नहीं था। उन्होंने न्यायाधिकरण की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह न तो अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है और न ही निष्पक्ष है। हसीना ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्व सरकार के प्रति थोड़ी सी भी सहानुभूति रखने वाले न्यायाधीशों और वकीलों को या तो सताया गया या उन्हें खामोश कर दिया गया।
अपने बचाव के अधिकारों पर चिंता जताते हुए, हसीना ने कहा कि उन्हें सुनवाई में अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया, और न ही उन्हें अपनी पसंद के वकील नियुक्त करने की इजाज़त मिली। उन्होंने इसे एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा बताया, जहाँ फैसला पहले से ही तय था।
हसीना ने देश की मौजूदा अंतरिम सरकार पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने इसे ‘अराजकता, हिंसा और सामाजिक पिछड़ेपन’ फैलाने वाली सरकार बताया। उनके मुताबिक, यह सरकार देश को आर्थिक तबाही की ओर ले जा रही है और अल्पसंख्यकों व पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। हसीना ने कहा कि उनके समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जुलाई और अगस्त में हुई हिंसा पर बात करते हुए, हसीना ने कहा कि यह मामला विकृत किया जा रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि हालात नियंत्रण से बाहर हो गए थे, लेकिन यह कहना गलत है कि यह नागरिकों के खिलाफ एक सुनियोजित हमला था। उन्होंने कहा, “हमने स्थिति पर नियंत्रण खो दिया था, लेकिन इसे नागरिकों के खिलाफ पूर्वनियोजित हमला कहना तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करना है।”
अंत में, हसीना ने कहा कि वह इस फैसले को स्वीकार नहीं करतीं और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की है। उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) में मामले की सुनवाई होने पर उन्हें न्याय मिलेगा, और अंतरिम सरकार इसी डर से मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाने से रोक रही है।
