नई दिल्ली: अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत-रूस की दोस्ती अटूट बनी हुई है। वाशिंगटन के दबाव, प्रतिबंधों की चेतावनी और व्यापार युद्धाभ्यास के बावजूद, भारत ने रूस का साथ नहीं छोड़ा है। अब, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 5 दिसंबर को भारत के दौरे पर आ रहे हैं। यह दौरा सिर्फ कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए नहीं है, बल्कि यह कई ऐसे महत्वपूर्ण समझौतों का गवाह बनेगा, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘पहले अमेरिका’ की नीति को चुनौती देंगे।
यह यात्रा भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव लाने वाली है। तीन साल बाद, पुतिन 23वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक के लिए भारत आ रहे हैं। दुनिया भर की निगाहें, खासकर अमेरिका की, इस बैठक पर टिकी होंगी। जबकि अमेरिका दोनों देशों के बीच फासला पैदा करने की कोशिश कर रहा है, भारत और रूस अपनी रणनीतिक साझेदारी को एक नए स्तर पर ले जाने के लिए तैयार हैं।
अमेरिकी दबाव पर भारत की अडिग प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूस से तेल खरीदना बंद करने, एस-400 मिसाइल सिस्टम जैसे रक्षा सौदों को रद्द करने और रूस पर लगे प्रतिबंधों का पालन करने के लिए भारी दबाव डाला। अमेरिकी धमकियों के बावजूद, भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता दी और रूस से तेल आयात जारी रखा। हाल के महीनों में भारत ने रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल का आयात किया है, जो वाशिंगटन के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा।
राष्ट्रपति पुतिन का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब वैश्विक भू-राजनीति में तनाव का माहौल है। अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों और भारत पर रूस से दूरी बनाने के दबाव के बीच, भारत का अपने पारंपरिक सहयोगी के साथ सहयोग को गहरा करना अमेरिका के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।
रणनीतिक और रक्षा सौदे जो अमेरिका को चिंता में डालेंगे
भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में लगभग 68.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। दोनों देश इस व्यापार को 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखते हैं। पुतिन की यात्रा इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक स्पष्ट योजना पेश करेगी।
व्यापार के अलावा, रक्षा क्षेत्र में बड़े सौदे होने की उम्मीद है, जो अमेरिका के लिए चिंता का विषय होंगे:
सुखोई-57 स्टील्थ लड़ाकू विमानों की खरीद पर बातचीत।
एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की अतिरिक्त इकाइयां, जो भारत की रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करेंगी।
संभावित रूप से, भारत में एस-500 मिसाइल प्रणाली के निर्माण की संभावना पर चर्चा।
आर्कटिक क्षेत्र में संयुक्त निवेश के अवसर, जो ऊर्जा और संसाधनों के नए रास्ते खोलेंगे।
व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री मार्ग का विकास, जो दोनों देशों के बीच शिपिंग और व्यापार को सुगम बनाएगा।
रोजगार सृजन: 70,000 भारतीय श्रमिकों को रूस में अवसर
रूस जल्द ही लगभग 70,000 भारतीय श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर खोल रहा है। यह द्विपक्षीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो भारत में रोजगार को बढ़ावा देगा। यह उस समय आया है जब अमेरिका व्यापार बाधाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।
क्यों अमेरिका चिंतित है?
पुतिन की भारत यात्रा ऐसे नाजुक मोड़ पर हो रही है, जब अमेरिका रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। भारत का रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में, अमेरिकी हितों के लिए एक सीधा टकराव है। यदि यह बैठक सफल रहती है, तो यह ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति की एक बड़ी विफलता साबित होगी।
