वाशिंगटन के दबाव और प्रतिबंधों की चेतावनी के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपनी साझेदारी को गहरा करने का फैसला किया है। 5 दिसंबर को होने वाली बहुप्रतीक्षित भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिल्ली आ रहे हैं। यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव बना रहा है, लेकिन भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति के चलते यह संभव नहीं लग रहा।
यह सिर्फ दो देशों के नेताओं की मुलाकात नहीं है, बल्कि यह एक भू-राजनीतिक दांव है जो अमेरिका की नीतियों को चुनौती देगा। तीन साल बाद पुतिन का भारत आगमन, भारत-रूस के बीच मजबूत होते संबंधों का प्रतीक है। यह दिखाता है कि भारत किसी एक महाशक्ति के प्रभाव में आकर अपने पुराने दोस्तों से मुंह नहीं मोड़ेगा।
**अमेरिकी धमकियों का भारतीय जवाब: अड़िग साझेदारी**
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने भारत पर रूस से हथियार और ऊर्जा खरीदने के लिए कई तरह के दबाव बनाए। रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध, आयात पर भारी शुल्क की धमकी, और एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद पर CAATSA प्रतिबंधों की चेतावनी – इन सबके बावजूद भारत ने अपनी रक्षा और ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस के साथ संबंध बनाए रखे। रूस भारत का एक प्रमुख रक्षा साझेदार और महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
पुतिन की यह यात्रा ऐसे नाजुक अंतरराष्ट्रीय माहौल में हो रही है, जहां वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव देखे जा रहे हैं। पश्चिमी देश रूस पर दबाव बढ़ा रहे हैं, लेकिन भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए रूस के साथ सहयोग जारी रख रहा है।
**रक्षा, ऊर्जा और व्यापार: ‘मेगा’ सौदों पर होगी मुहर**
भारत और रूस के बीच वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार लगभग 68.7 बिलियन डॉलर है, जिसे बढ़ाकर 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है। पुतिन की दिल्ली यात्रा इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाएगी।
इस यात्रा का मुख्य आकर्षण रक्षा क्षेत्र में बड़े सौदे माने जा रहे हैं, जो अमेरिका के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं:
* **नई पीढ़ी के लड़ाकू विमान:** भारत सुखोई-57 जैसे उन्नत रूसी लड़ाकू विमानों की खरीद पर विचार कर सकता है।
* **एस-400 का विस्तार:** भारत एस-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों की और इकाइयां खरीदने पर सहमत हो सकता है।
* **रक्षा उत्पादन में सहयोग:** दोनों देश मिलकर रक्षा उपकरणों के निर्माण पर भी चर्चा कर सकते हैं, जिसमें एस-500 जैसी प्रणालियों का भारत में उत्पादन शामिल हो सकता है।
इसके अलावा, आर्कटिक क्षेत्र में निवेश और व्लादिवोस्तोक से चेन्नई तक एक नया समुद्री मार्ग विकसित करने की योजनाएं भी एजेंडे में हो सकती हैं, जो दोनों देशों के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देंगी।
**रोजगार सृजन: रूस में 70,000 भारतीयों के लिए अवसर**
एक अहम समझौते के तहत, रूस में लगभग 70,000 भारतीय श्रमिकों को रोजगार मिलेगा। यह भारत के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि यह अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक दबावों के बीच रोजगार के नए अवसर प्रदान करेगा।
**अमेरिका की घबराहट: एक भू-राजनीतिक चुनौती**
जब अमेरिका रूस पर प्रतिबंध लगा रहा है और भारत को धमका रहा है, ऐसे में भारत का रूस के साथ मजबूत होते संबंध अमेरिका की नीतियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं। पुतिन की यह यात्रा भारत-रूस संबंधों की मजबूती का प्रमाण है और यह दर्शाती है कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
