बिहार भाजपा द्वारा निलंबित किए गए वरिष्ठ नेता आर. के. सिंह ने पार्टी की कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि वे पहले ही अपना इस्तीफा दे चुके हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व से स्पष्टीकरण मांगा है कि किन ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के लिए उन्हें निलंबित किया गया है। भाजपा ने 15 नवंबर को सिंह को पार्टी से निलंबित किया था, जिसका मुख्य कारण 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी के उम्मीदवार चयन और नेतृत्व के रवैये पर उनकी मुखर आलोचना मानी जा रही है।
मीडिया से बात करते हुए, सिंह ने कहा, “मैंने पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा को अपना इस्तीफा भेज दिया है। अब वे बताएं कि मैंने क्या पार्टी के हित के खिलाफ किया है? यदि मैंने यह कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि या भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को टिकट नहीं मिलना चाहिए, तो यह कैसे पार्टी विरोधी गतिविधि हुई?” उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह की बातें पार्टी की साख को मजबूत करती हैं, न कि उसे नुकसान पहुंचाती हैं।
**चुनावों में टिकट वितरण पर उठाए थे सवाल**
आर. के. सिंह ने चुनावों के दौरान कई मौकों पर भाजपा और एनडीए के सहयोगियों पर ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का आरोप लगाया था, जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक या भ्रष्टाचार से जुड़ी थी। उन्होंने बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और बाहुबली नेता अनंत सिंह जैसे व्यक्तियों पर परोक्ष रूप से निशाना साधा था। सिंह का मानना था कि चुनावी जीत के लिए नैतिक सिद्धांतों से समझौता करना पार्टी के दीर्घकालिक हितों के लिए हानिकारक है।
उन्होंने कहा, “अगर किसी पार्टी में अपराधी छवि वाले लोगों को टिकट देना सामान्य बात है, तो ऐसे माहौल में रहना मुश्किल है। मैंने जो भी कहा, वह पार्टी की भलाई के लिए कहा था। ऐसे व्यक्तियों को टिकट देना देशहित में नहीं है और न ही यह जनता की भावना है।”
**चुनाव परिणाम और आंतरिक कलह**
आर. के. सिंह का निलंबन ऐसे समय में आया है जब हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए को जीत मिली है, लेकिन पार्टी के भीतर मतभेदों की अफवाहें भी गरमाई हुई हैं। सूत्रों का कहना है कि सिंह द्वारा पार्टी नेतृत्व और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर की गई सार्वजनिक टिप्पणियां उनके और राज्य भाजपा नेतृत्व के बीच की खाई को और चौड़ा कर रही थीं।
चुनाव प्रचार के दौरान, सिंह ने चुनाव आयोग पर कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने का आरोप लगाया था। उन्होंने मोकामा में जन सुराज के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या जैसी घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा था कि राज्य में ‘जंगल राज’ का माहौल है और शासन व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। इस मामले में बाद में दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी किया गया था।
**पार्टी का अनुशासनात्मक कदम**
इस कार्रवाई को पार्टी में असंतोष पर नियंत्रण के एक बड़े प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। बिहार भाजपा इकाई ने एमएलसी अशोक कुमार अग्रवाल और उनकी पत्नी, जो कटिहार की मेयर भी हैं, को भी ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में निलंबित किया है। उन पर अपने बेटे सौरभ अग्रवाल को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का आरोप है, जो वीआईपी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे। दोनों को जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है।
ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव परिणाम के बाद, पार्टी नेतृत्व राज्य में नए सिरे से सरकार गठन और राजनीतिक पुनर्गठन की तैयारियों के बीच अनुशासन को और कड़ा करना चाहता है।
**बिहार भाजपा में दिख रही दरार**
आर. के. सिंह का निलंबन और उनका आक्रामक रुख बिहार भाजपा में वैचारिक और नैतिक मतभेदों को उजागर करता है। हालांकि पार्टी इसे अनुशासन बनाए रखने के प्रयास के रूप में पेश कर रही है, सिंह के बयान पार्टी के भीतर कुछ वरिष्ठ नेताओं की उस चिंता को दर्शाते हैं कि पार्टी अपने नैतिक मूल्यों से भटक रही है। यह देखना बाकी है कि क्या आर. के. सिंह का यह विरोध एक व्यापक असंतोष की चिंगारी बनता है या यह एक अनुभवी नेता का अकेला विरोध बनकर रह जाता है।
