आज 15 नवंबर को हम भारत के महान आदिवासी नेता, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मना रहे हैं। 1875 में जन्मे बिरसा मुंडा ने अपने छोटे से जीवनकाल में ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध खड़ा किया और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की आवाज बुलंद की। उनकी विरासत आज भी देश भर के आदिवासी आंदोलनों और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को प्रेरणा दे रही है।
**’उलगुलान’ – शोषण के खिलाफ एक महाविद्रोह:**
बिरसा मुंडा को मुख्य रूप से 1899-1900 के ‘उलगुलान’ (महाविद्रोह) का नेतृत्व करने के लिए याद किया जाता है। यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत और जमींदारों द्वारा आदिवासियों के शोषण, उनकी भूमि और वन अधिकारों के हनन के खिलाफ एक जोरदार आवाज थी। बिरसा ने ‘मुंडा राज’ की स्थापना का आह्वान किया, जिसका उद्देश्य आदिवासी समुदाय को स्वायत्तता और आत्म-शासन प्रदान करना था।
केवल 25 वर्ष की आयु में उनका असामयिक निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा स्थापित न्याय, समानता और आदिवासी अधिकारों के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। वे आदिवासियों के लिए स्वतंत्रता, उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष और अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रतीक बन गए हैं।
**झारखंड का गौरव और आदिवासी पहचान:**
झारखंड राज्य में, बिरसा मुंडा की जयंती एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। इस दिन बड़े पैमाने पर समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम और शैक्षिक अभियान चलाए जाते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में विशेष सत्र आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बिरसा मुंडा के जीवन, उनके समाज सुधार के कार्यों और जंगलों की रक्षा के प्रति उनके समर्पण को रेखांकित किया जाता है।
उनकी विरासत आदिवासी गौरव और पहचान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह समुदायों को सामाजिक न्याय, एकता और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराती है।
**आधुनिक आदिवासी आंदोलनों की प्रेरणा:**
बिरसा मुंडा की अन्याय के खिलाफ लड़ने की भावना आज के आदिवासी आंदोलनों के लिए एक मशाल का काम कर रही है। भूमि अधिकार, वन संरक्षण और स्वदेशी शासन के लिए संघर्षरत कार्यकर्ता आज भी बिरसा के विचारों से प्रेरणा लेकर समुदायों को संगठित करते हैं और नीतिगत सुधारों की मांग करते हैं। प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन और आत्मनिर्भरता का उनका दृष्टिकोण आज के समय में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
**वन संरक्षण में बिरसा की छाया:**
बिरसा मुंडा का पर्यावरण के प्रति प्रेम और समुदाय-आधारित संरक्षण का मॉडल आज के ‘वन रक्षकों’ में जीवित है। टी. मुरुगन, येलप्पा रेड्डी, जाधव ‘मोलाई’ पैयेंग और चंदापा हेगड़े जैसे व्यक्तियों ने वनों को पुनर्जीवित करने, पेड़ लगाने और जैव विविधता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे बिरसा की तरह ही समुदायों को साथ लेकर स्थायी विकास का संदेश दे रहे हैं, जो दर्शाता है कि उनकी प्रेरणा किसी एक कालखंड तक सीमित नहीं है।
**निरंतर जारी रहने वाली विरासत:**
आज, जब हम भगवान बिरसा मुंडा को याद करते हैं, तो उनका जीवन हमें साहस, दृढ़ संकल्प और सामुदायिक एकता की शक्ति का स्मरण कराता है। औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई से लेकर पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी सशक्तिकरण के लिए वर्तमान आंदोलनों तक, बिरसा मुंडा का विजन भारत के जंगलों और आदिवासी समुदायों के भविष्य को निरंतर दिशा दे रहा है।
उनकी जयंती के अवसर पर, यह आवश्यक है कि हम उनके न्याय, समानता और सतत विकास के आदर्शों को समझें और सुनिश्चित करें कि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बने रहें।
